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18 फरवरी को दुनिया की पहली एयरमेल उड़ी थी इलाहाबाद के नैनी तक

नई दिल्ली: यूं तो भारत में पुष्कर विमान से लेकर बापूजी तालवड़े के विमान फॉरमूले तक (जिन पर मूवी हवाईजादा बनी है) की चर्चा होती रही है, लेकिन दुनियां भर एक एक्सपर्ट्स ने इस मामले में भारत को कभी क्रेडिट नहीं दिया. लेकिन प्लेन फ्लाइंग के इतिहास में एक एक याद भारत के साथ भी जुड़ी है और वो काम दुनियां भर में पहली बार भारत में हुआ. दुनियां भर में एयरमेल यानी एयरोप्लेन के जरिए चिट्ठियां भेजने के लिए पहली फ्लाइट भारत में ही उड़ाई गई और तारीख थी 18 फरवरी 1911.
ये एयरमेल फ्लाइट इलाहाबाद के पोलो ग्राउंड से नैनी तक करीब दस किलोमीटर के फासले तक उडाई गई और इस प्लेन में कुल 6000 लैटर्स और कार्ड्स थे. खास बात ये है कि इस फ्लाइट को एक खास चैरिटी के लिए उड़ाया गया था, इलाहाबाद की एक चर्च के हॉस्टल को बनाने के लिए पैसा इकट्ठा करने की खातिर. हर लैटर पर ये चार्ज अलग से लिया गया, जो इकट्ठा करके उस चर्च को दे दिया गया. इस फ्लाइट को उड़ाने वाले पायलट का नाम था हेनरी पेक्वेट.
दरअसल हेनरी पेक्वेट फ्रांस से किसी खास मकसद से उन दिनों इंडिया में आया हुआ था. एक ब्रिटिश एविएशन बिजनेसमेन वॉल्टर विंडहम ने इलाहाबाद में फ्लाइंग एक्जीबीशन लगाई हुई थी और हेनरी को उस एक्जीबीशन में प्लेन उड़ा कर दिखाना था. ये मौका भारत के इतिहास में इसलिए भी खास था, क्योंकि देश में पहली बार कोई प्लेन उड़ने वाला था. होली ट्रिनिटी चर्च, इलाहाबाद के लोगों ने वॉल्टर से गुजारिश की कि वो एक नए यूथ हॉस्टल के लिए फंड जुटाने में कुछ मदद करे. तो वॉल्टर ने आइडिया सुझाया कि वो एक प्लेन की छोटी सी फ्लाइट अपनी तरफ से इस काम के लिए दे सकता है. उसने खुद ही एयरमेल का सुझाव दिया.
कुल 6000 लैटर्स और कार्ड्स जुट गए, जिन पर अतिरिक्त पैसे देने के लिए लोग तैयार थे. पोस्टल डिपार्टमेंट से भी हाथ मिलाकर उस एयरमेल फ्लाइट को ऑफीशियल रिकॉर्ड पर लाया गया. फिर इलाहाबाद के पोलो ग्राउंड से वो फ्लाइट उड़ी और गंगा के ऊपर से गुजरते हुए कुल तेरह मिनट में करीब दस किलोमीटर दूर नैनी में उतरी. इसमें हम्बर सोमर बाइप्लेन उडाया गया, जो 50 हॉर्सपॉवर का था और जिसे रोजर सोमर ने एक साल पहले ही डिजाइन किया था. इसके बाद दुनियां में दूसरी एयरमेल फ्लाइट अमेरिकी में उसी साल 23 सितम्बर को उड़ाई गई थी.
हालांकि इससे पहले एयरमेल भेजी जाती थी, लेकिन उसके लिए कभी भी एयरोप्लेन का इस्तेमाल नहीं किया गया था. ऐसी एयरमेल ग्लाइडर्स और बैलून्स के जरिए 1859 से ही भेजी जा रही थीं. यूं तो राइट ब्रदर्स ने प्लेन 1903 में ही उड़ा लिया था, लेकिन ऑफीशियली एयरमेल भेजने की बात किसी के दिमाग में नहीं आई थी. वॉल्टर ने भी जब ये फ्लाइट उड़ कर पहुंच गई, उसी के बाद पता किया कि इससे पहले कभी कोई एयरमेल एयरोप्लेन के जरिए भेजी भी गई थी कि नहीं. इस तरह से वॉल्टर और हेनरी का नाम केवल भारत की ही नहीं वर्ल्ड की भी फ्लाइंग और पोस्ट ऑफिस हिस्ट्री में जुड़ गया.
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