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डीएलएफ ने रॉबर्ट वाड्रा की फर्म के नाम पर मांगा ‘लैंड डेवलपमेंट’ लाइसेंस !

गुड़गांव. यूपीए सरकार के समय जमीन सौदों और डीएलएफ से संबंधों को लेकर विवादों में फंस चुके कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा एक बार फिर से चर्चा में हैं.
दरअसल डीएलएफ की ओर से लैंड डेवलपमेंट लाइसेंस को लेकर हरियाणा सरकार के पास अर्जी दी गई. जिसमें लाइसेंस को स्काइलाइट हॉस्पिटैलिटी के नाम पर जारी करने को कहा गया है.
ये कंपनी रॉबर्ट वाड्रा के नाम पर दर्ज है. आपको बता दें कि इस कंपनी को पहले भी लाइसेंस जारी किया चुका था जिसकी मियाद दो साल पहले दिसंबर 2016 में खत्म हो चुकी है.
रिकॉर्डों से  मिली जानकारी के मुताबिक गुड़गांव के सेक्टर-83 में  27 एकड़ जमीन के लिए स्काइलाइट हॉस्पीटैलिटी को जारी लाइसेंस की फीस भी डीएलएफ की ओर से चुकाई गई थी.
इस बारे में डीएलएफ के सीईओ राजीव तलवार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि कंपनी की ओर से लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया गया है.
सूत्रों को कहना है कि इस लाइसेंस को डीएलएफ के नाम पर जारी नहीं किया गया था क्योंकि 2012 में उस समय के चकबंदी निदेशक अशोक खेमका ने  भूमि पर दाखिल-खारिज रद्द कर दिया गया था.
आपको बता दें गुड़गांव में जमीन सौदों को लेकर हरियाणा सरकार सीबीआई से जांच करा रही है. इससे पहले इसी मामले  पर गठित धींगरा समिति ने अपनी रिपोर्ट में संकेत दिए थे कि इन सौदों में कुछ न कुछ गड़बड़ी हुई है. गौरतलब है कि ये सभी सौदे उस समय हुए थे जब राज्य में कांग्रेस सरकार थी.
अब देखने वाली बात यह होगी कि जिस मुद्दे को केंद्र में मोदी और राज्य में खट्टर सरकार जोर-शोर से उठाकर सत्ता में आई थी इस आवेदन पर क्या फैसला लेती है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा है कि उनको इस आवेदन के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. विभाग के अधिकारी इसके बारे में ज्यादा अच्छा बता पाएंगे.
उन्होंने कहा कि कुछ मुद्दों की जांच के लिए हमने सीबीआई से कराई शुरू कराई है. कुछ मुद्दे धींगरा समिति में भी सामने आए हैं. इनके बारे में जल्दी ही घोषणा होगी. अगर कुछ शिकायत मिलती है इसकी भी जांच करवाई जाएगी.
वहीं स्काईलाइट ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा गया है कि इस जमीन को लेकर सभी अधिकार डीएलएफ को सौंप दिए गए थे. जहां तक इसके मालिकाना हक का सवाल है यह संबंधित विभाग की जिम्मेदारी है.
ये था पूरा मामला
रिकॉर्डों के मुताबिक लाइसेंस संख्या 203 को 2008 में स्काइलाइट के नाम से जारी किया गया था जो दिसंबर 2012 तक वैध था. इसके बाद फिर लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए 2014 में अप्लाई किया गया जिसे दिसंबर 2016 तक के लिए वैध था.
इसके बाद प्लानिंग डिपार्टमेंट की ओर से लाइसेंस को स्काइलाइट से डीएलएफ को ट्रांसफर करने के लिए दी गई अर्जी पर मंजूरी दे दी.
इसके बाद डीएलएफ की ओर से 12.75 करोड़ रुपए लाइसेंस के नवीनीकरण और संबंधित चीजों की फीस के तौर पर जमा कराए थे. इसी पूरी डील को बीजेपी ने मुद्दा बनाया और राज्य की तत्कालीन भूपेंदर सिंह हुड्डा पर सवाल उठाए थे.

 

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