नई दिल्ली. दिल्ली और आस-पास के इलाकों के मकान मालिक मुसलमान और दलितों को किराए पर मकान देने से कन्नी काटते हैं. समाज की यह चिंताजनक तस्वीर सामने आई है एक फील्ड स्टडी से.
इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च (ICSSR) के चेयरमैन प्रो. एस.के. थोराट की अगुवाई में स्कॉलर अनुराधा बनर्जी, विनोद मिश्रा और फिरदौस रिजवी ने दिल्ली, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नोएडा और गुड़गांव में जनवरी और मार्च, 2012 के दौरान यह सर्वे किया था. सर्वे में टेलीफोन पर कॉल करके और मिलकर घर मांगने का मॉडल रखा गया था.
रिसर्च टीम ने 493-493 के तीन ग्रुप बनाए जिनके नाम से ही पता चलता था कि वो सवर्ण हिन्दू, मुसलमान या दलित हैं. इन लोगों ने टेलीफोन पर मकान मालिकों से बात की. नतीजा चौंकाने वाला था. 493 सवर्ण हिन्दू में से किसी को भी किसी मकान मालिक ने ना नहीं कहा लेकिन 18 फीसदी दलित नाम वालों और 31 फीसदी मुस्लिम नाम वालों को मकान मालिकों ने सीधे मना कर दिया.
इसी तरह सवर्ण हिन्दू, दलित और मुस्लिम नाम से 66-66 का ग्रुप बनाकर 198 मकान मालिकों से सीधे जाकर मिला गया. इसमें 97 फीसदी सवर्ण हिन्दुओं को मकान मालिकों ने हां कर दी. 44 फीसदी दलित और 61 फीसदी मुस्लिमों को मकान मालिकों ने मना कर दिया.
थोराट ने रिपोर्ट जारी करने के बाद कहा कि इससे पता चलता है कि मार्केट फेल कर गया है. उन्होंने कहा कि सिर्फ पैसे से ही बात नहीं बन रही. पक्षपात के पैमाने पर पैसा कमजोर है.
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