नई दिल्ली. एम्स में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया में धांधली का मामला सामने आया है. दरअसल, एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर एम्स को भ्रष्टाचार से बचाने की गुहार लगाई है. इसके अलावा एम्स के दो वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कैट में एक याचिका दायर की है.
आरडीए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर संस्थान में डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए गठित चयन समिति की निष्पक्षता और योग्यता पर सवाल खड़ा किया है. साथ ही पीएम मोदी से मामले में हस्तक्षेप का मांग करते हुए कहा है कि वो एम्स को भ्रष्टाचार से बचाएं.
पीएम मोदी को लिखा पत्र
इसके अलावा पीएम मोदी को लिखे पत्र में यह भी आरोप लगाया है कि चयन समिति के मौजूदा अध्यक्ष की उपलब्धियों पर कोई संदेह नहीं है. लेकिन उनके पास एक भी शोध पत्र नहीं है और बिना शोध के कोई भी डॉक्टर एम्स में फैकल्टी के लिए योग्य नहीं हो सकता. पत्र में आगे लिखा गया है कि कमेटी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को अंधेरे में रखा गया. एम्स में शैक्षणिक कैडर के डॉक्टरों की नियुक्ति में चयन समिति के अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. संस्थान में फैकल्टी के पद पर नियुक्ति के लिए शोध पत्र होना जरूरी है.
याचिकाकर्ता का आरोप
वहीं दो वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टरों ने याचिका में आरोप लगाते हुए कहा है कि निजी अस्पताल से डीएनबी की पढ़ाई करने वाले डॉक्टर को तीन साल के अनुभव के आधार पर नियुक्ति दे दी गई. जबकि इसकी डिग्री के लिए चार साल के अनुभव की जरूरत होती है.
कैसे होती है नियुक्ति ?
एम्स एक स्वायत्तशासी संस्थान होने के नाते अपने डॉक्टरों की नियुक्ति अपने स्तर से ही करता है. इसके लिए संस्थान की ओर से एक चयन समिति का गठन किया गया है. यह कमेरी इंटरव्यू के जरिए फैकल्टी का चयन करती है.