बक्सर. एक बार फिर एक ‘बिहारी’ ने देश के लिए बड़ा काम कर दिखाया है. बक्सर जिले के डुमरी गांव के रहने वाले संजय कुमार ने ही वह तकनीकी विकसित की है जिससे भारतीय वायु सेना के विमान दुश्मन के रडार को आसनी से भेद कर उनकी सीमा पर घुस सकते हैं.
संजय कुमार एयरफोर्स से एयर कमोडोर के पद से रिटायर हुए हैं. संजय कुमार की इस उपलब्धि पर पूरे देश और वायुसेना को गर्व है. कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद 2015 में उन्होंने इस तकनीकी का ईजाद किया और उनकी इस सफलता पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें बीते 8 अक्टूबर को विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया है.
इंजीनियरिंग पर लिख चुके हैं किताबें
वायु सेना की कठिन और जिम्मेदारी भरी नौकरी पर होते हुए भी संजय कुमार ने 7 किताबें लिखी हैं. जो एप्लीकेशन ऑफ माइक्रोवेब इंजीनियरिंग, एवियानिक्स व वेब प्रोपेगेशन एंड एंटीना इंजीनियरिंग पर आधारित हैं. उनकी किताबों को देश भर में वायुसेना के पुस्तकालयों में रखा गया है.वायुसेना की इंजीनियरिंग कोर से जुड़े अधिकारियों और इंजीनियरों के लिए यह किताबें किसी वरदान से कम नहीं हैं.
रडार जाम करने की तकनीकी
आज के दौर में जब लड़ाईयां तकनीकी के आधार पर होने लगी हैं उस दौर में दुश्मन के रडार को भेद पाना बड़ी उपलब्धि है. दुनिया के कुछ ही देश ऐसा कर पाने में सक्षम हैं. जिसमें भारत के पास सबसे दक्ष क्षमता है. संजय कुमार ने एयरफोर्स के वायुसेना के अधिकारियों, तकनीशियनों की टीम की अगुवाई की और दुश्मन देश के रडार को जाम करने का तरीका ढूंढ़ निकाला.
इसके क्या होगा सेना को फायदा
दरअसल रडार प्रणाली का काम दुश्मन देश के विमानों और तमाम गतिविधियों पर नजर रखना होता है. रडार सिस्टम तुरंत बता देता है कि कोई सीमा देश की सीमा में घुस रहा है. लेकिन अगर इस रडार सिस्टम को जाम कर दिया तो समझ लो कि सुरक्षा करने वाला पूरा सिस्टम अंधे की तरह हो जाता है. संजय कुमार ने ऐसी ही तकनीकी विकसित की है. अब भारतीय सेना के विमान पाकिस्तान और चीन के रडार सिस्टम को आसानी से भेद कर उनकी सीमा में घुसकर कहर बरपा सकते हैं.
डुमरी गांव को है गर्व
संजय कुमार इसी साल वायुसेना से रिटायर हुए हैं. उनके पिता का नाम तेज नारायण कुमार था. जो डुमरांव डीके कॉलेज में प्रोफेसर थे. हाईस्कूल तक संजय कुमार की पढ़ाई डुमरी स्कूल से हुई.
डीके इंटर कॉलेज से 12 वीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने सिंदरी के बीआईटी से बीटेक किया फिर आईआईटी दिल्ली से एमटेक और इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशन और रडार टेक्नोलॉजी में पीएचडी की.
इसके बाद 1984 में उन्होंने वायुसेना में पायलट ऑफिसर वायुसेना में नौकरी शुरू की. अब वह रायपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के उप कुलपति हैं. उम्मीद है कि वह अपनी ही तरह देश के लिए और भी होनहारों को तैयार करेंगे.