आगरा. उत्तर प्रदेश में हर 26 घंटे (लगभग हर दिन) में एक कैदी की मौत होती है. राज्य के जेल विभाग से आरटीआई के जरिए मिले जवाब में इस बात की जानकारी दी गई है. जवाब में बताया गया हे कि यूपी में साल 2010 से अब तक 2050 से ज्यादा कैदियों की मौत हो चुकी है.
ये आरटीआई मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने लगाई थी. जवाब मिलने के बाद नरेश ने इस मामले का संज्ञान लेने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, यूपी के राज्यपाल और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है.
जेल में नहीं ईलाज की सुविधाएं
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक जनवरी 2010 से फरवरी 2016 तक 74 महीनों के दौरान 2062 कैदियों की मौत हो गई. इनमें से 50 फीसदी ऐसे थे, जिनका ट्रायल चल रहा था. वहीं, 2010 से 2015 के बीच 44 कैदियों ने आत्महत्या कर ली. करीब 24 कैदी पुलिस कस्टडी में मारे गए.
नरेश पारस का कहना है कि यूपी में जेलों की हालत बहुत खराब है. यहां कैदियों के इलाज की अच्छी व्यवस्था नहीं है और क्लिनिक्स के भी बुरे हाल हैं. राज्य सरकार और जेल प्राधिकरण को कैदियों के अधिकारों से कोई सरोकार नहीं है. जेल के अंदर का माहौल कैदियों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करता है. जबकि कैदियों की सुरक्षा जेल प्राधिकारण की प्राथमिकता है.
2012 में बढ़ गई संख्या
साल 2010 में 322 कैदियों की मौत हुई, जिनमें से आधों ने आत्महत्या कर ली थी, एक पुलिस कस्टडी में मारा गया था और छह की हत्या हो गई थी. साल 2011 में पाकिस्तान के अंडरट्रायल कैदी सहित 285 कैदियों की जान गई. अगले साल यानी 2012 में कैंदियों के मरने की संख्या बढ़कर 360 हो गई.
साल 2013 में मरने वाले कैदियों की संख्या 358 और साल 2014 व 2015 में 345 रही. पुलिस महानिरीक्षक जीएल मीणा ने बताया कि कैदियों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. बुढ़ापे और बीमारी के कारण होने वाली मौतें सामान्य बता हैं और इन पर किसी का जोर नहीं है. पिछले कुछ सालों में जेल की स्थिति में सुधार हुआ है और नए जेलों की संख्या भी बढ़ी है.