नई दिल्ली. मोहर्रम के दिन को लेकर बहुत से लोगों को ग़लतफ़हमी है. कुछ लोगों को लगता है कि मोहर्रम त्यौहार है पर ऐसा नहीं है दरअसल मोहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि मातम का दिन हैं.
इस्लाम में शिया समुदाय के लिए ये मातम का दिन हैं. इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन इराक में करबला के मैदान में शहीद हुए थे. ये वो दौर था जब इस्लाम में खलीफा का शासन हुआ करता था.
उस समय के खलीफा का नाम यजीद था. यजीद इस्लामिक मूल्यों को नहीं मानता था. इराक के बहुत से लोग इमाम हुसैन को अपना खलीफा मानते थे. ये बात यजीद को बिलकुल पसंद नहीं थी.
उसने अपनी सेना के साथ इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों को करबला के मैदान में घेर लिया. इमाम हुसैन ने अंत तक युद्ध टालने की कोशिश की पर यजीद ने क्रूरता दिखाते हुए इमाम हुसैन और उनके अनुयायिओं को पानी तक के मोहताज कर दिया.
ऐसे में इमाम हुसैन के पास यजीद से युद्ध करने के आलावा कोई चारा नहीं बचा था. एक-एक कर इमाम हुसैन के सभी अनुयायी यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए और अंत में इमाम हुसैन भी अपनी परिवार की रक्षा करते हुए यजीद की फौज के हाथों मारे गए. तभी से इस्माल में शिया समुदाय के लोग इस दिन इमाम हुसैन की शहादत पर मातम मानते है.
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