नई दिल्ली. आज से पितृ पक्ष यानि श्राद्ध पक्ष शुरू हो गया है. पितृ पक्ष 15 दिन का होता है, जो भाद्रपद की पूर्णिमा को शुरू होता है और अश्विन की अमावस्या यानि सर्व पितृ अमावस्या को खत्म होता है. शास्त्रों के मुताबिक इन हमारे पूर्वज या पितर पितृ पक्ष के पूरे 15 दिन धरती पर निवास करते हैं. इस अवधि में हम जो भी उन्हें श्रद्धा से अर्पित करते हैं वह वे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं और इसी को श्राद्ध कहा जाता है. श्राद्ध को पिण्ड के रूप में पितरों को देने की परंपरा है.
श्राद्ध देना क्यों है जरूरी?
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक पितृ पक्ष में पितर को श्राद्ध या पिण्डदान नहीं करने से वे नाराज हो जाता हैं. पितरों की नाराजगी से हमें धन हानि, संतान, क्लेश, बीमारी आदि से गुजरना पड़ता है, इसलिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना अनिवार्य माना गया है.
श्राद्ध में के सामान
श्राद्ध या पिण्डदान में काले तिल, सफेद तिल, चावल, जौ, सफेद फूल, कुशा इत्यादी को काफी महत्व दिया गया है. आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है. श्राद्ध को हमेशा पिण्ड बनाकर ही अर्पित करना चाहिए.
किसको है श्राद्ध का अधिकार?
शास्त्रों के मुताबिक श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी है. श्राद्ध के बाद कौओं को जरूर खिलाना चाहिए, क्योंकि कौओं को पितर का रूप माना गया है. कहा जाता है कि पितर कौओं के रूप में श्राद्ध लेने धरती पर आते हैं. श्राद्ध का पहला अंश कौओं को देने का विधान है.
किस दिन किसका करें श्राद्ध ?
यदि आपको किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा यानि पहली तिथि को हुई है तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा को ही किया जाएगा. लेकिन पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का नवमी के दिन किया जाता है. साथ ही जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन होता है और जिन परिजनों की मृत्यु की तारीख याद नहीं है तो उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानि अमावस्या के दिन किया जाएगा. पितृ पक्ष की अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या भी कहते हैं.
आपका कैसे होगा कल्याण?
अब सभी जानते हैं कि पिण्डदान या श्राद्ध करने से पितरों का कल्याण होता है लेकिन आप यह नहीं जानते हैं कि पिण्डदान से आपका भी सोया हुआ भाग्य जागृत हो सकता है. इसके लिए आपको नक्षत्रों के अनुसार श्राद्ध करना होगा.
ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए आर्द्रा नक्षत्र में, पुत्र पाप्ति के लिए रोहिणी नक्षत्र में, गुणों के विकास के लिए मृगशिरा नक्षत्र में, सुंदरता प्राप्त करने के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में, वैभव की चाह रखने वाले पुष्य नक्षत्र में, अधिक आयु की कामना रखने वाले अश्लेषा नक्षत्र में, अच्छी सेहत के लिए मघा नक्षत्र में, अच्छे सौभाग्य के लिए पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में, विद्या के लिए हस्त नक्षत्र में, प्रसिद्ध संतान के लिए चित्रा नक्षत्र में, व्यापार में लाभ स्वाति नक्षत्र में, वंश वृद्धि के लिए विशाखा नक्षत्र में, उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए अनुराधा नक्षत्र में, उच्च अधिकार भरे दायित्व के लिए ज्येष्ठा नक्षत्र में, निरोगी काया के लिए मूल नक्षत्र में और समस्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए कृतिका नक्षत्र में श्राद्ध करें.
पितृ पक्ष एक नजर में
16, सितम्बर (शुक्रवार) पूर्णिमा श्राद्ध, शतभिषा
17, सितम्बर (शनिवार) प्रतिपदा श्राद्ध, उत्तरा भाद्रपद
18, सितम्बर (रविवार) द्वितीया श्राद्ध, रेवती
19, सितम्बर (सोमवार) तृतीया श्राद्ध, चतुर्थी श्राद्ध, अश्विनी
20, सितम्बर (मंगलवार) पंचमी श्राद्ध, भरणी
21, सितम्बर (बुधवार) षष्ठी श्राद्ध, कृतिका
22, सितम्बर (बृहस्पतिवार) सप्तमी श्राद्ध, रोहिणी
23, सितम्बर (शुक्रवार) अष्टमी श्राद्ध, मृगशिरा
24, सितम्बर (शनिवार) नवमी श्राद्ध, आद्रा
25, सितम्बर (रविवार) दशमी श्राद्ध, पुनर्वसु
26, सितम्बर (सोमवार) एकादशी श्राद्ध, पुष्य
27, सितम्बर (मंगलवार) द्वादशी श्राद्ध, अश्लेशा
28, सितम्बर (बुधवार) त्रयोदशी श्राद्ध, मघा
29, सितम्बर (बृहस्पतिवार) चतुर्दशी श्राद्ध, पूर्वा फाल्गुन
30, सितम्बर (शुक्रवार) सर्वपितृ अमावस्या, उत्तरा फाल्गुन
श्राद्ध विधि
अपने कुल, गोत्र, नाम, राशि और पितर का नाम तथा संबंध का उल्लेख कर हाथ में जल लेकर संकल्प करें. हमेशा पूर्वाभिमुख होकर ही श्राद्ध करें. कुश, चावल, जौ, तुलसी के पत्ते और सफेद फूल को श्राद्ध में शामिल करें. तिल वाले जल की तीन अंजुलियां दे. पिण्डदान के बाद ब्राह्मण को दान अवश्य दें, ब्राह्मण ना मिलने पर दामाद, नाती अथवा भांजे को दान दिया जा सकता है. श्राद्ध के बाद गाय, कुत्ता, और कौवा को खाना जरूर खिलाएं.
नोट. यह जरूरी नहीं है कि आपके पितर की तिथि उपरोक्त नक्षत्र में ही पड़े, लेकिन जिनकी तिथि नक्षत्र के मुताबिक पड़ रही है उनके लिए बेहद ही खास योग है.