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घर-घर बेचा जाने वाला डिटरजेंट कैसे बना ‘सबकी पसंद निरमा’

नई दिल्ली. एक समय था जब निरमा का मतलब ही ​डिटरजेंट पाउडर हुआ करता था. आज भी इसका जिंगल ‘सबकी पसंद निरमा’ लोगों के जहन में बसा हुआ है. लेकिन, निरमा ​​​लिमिटेड की सफलता की यह इमारत ऐसे ही इतनी ऊंची और मजबूत नहीं है. इस इमारत की बुनियाद में निरमा के जनक करसनभाई पटेल की जीतोड़ मेहनत और सूझबूझ लगी है.
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करसनभाई पटेल ने एक कार दुर्घटना में अपनी बेटी निरमा को खो तो दिया था लेकिन, वह उसका नाम गुमनाम नहीं होने देना चाहते थे. उन्होंने ब्रांड का नाम ही अपनी बेटी के नाम पर रखकर निरमा को हमेशा के लिए अमर कर दिया और कंपनी को अपनी बेटी की तरह पाल-पोसकर आगे बढ़ाया.
जिस उत्पाद को करसनभाई पटेल घर-घर जाकर बेचा करते थे वही आज साबुन के बाजार में 20 फीसदी और डिटरजेंट में 35 फीसदी हिस्सेदारी रखता है. करसनभाई ने वर्ष 1969 में निरमा ​डिटरजेंट पाउडर बनाने की शुरुआत की. वह ऐसा समय था जब घरेलू डिटरजेंट के बाजार में कुछ ही बड़ी कंपनियां पकड़ रखती थीं. इनमें मुख्यता बहु राष्ट्रीय कंपनियां ही थीं, जिनकी पहुंच केवल अमीर परिवारों तक थी. मध्यम वर्गीय परिवार और गरीब लोग इन डिटरजेंट पाउडर को खरीद ही नहीं पाते थे.
तब करसनभाई ने अहमदाबाद के पास खोकरा में अपने घर के पीछे डिटरजेंट पाउडर बनाना शुरू किया. वह घर-घर जाकर डिटरजेंट बचते थे. उन्होंने निरमा की ​कीमत 3 रुपये प्रति किलो रखी, जबकि अन्य ब्रांड के डिटरजेंट 13 रुपये प्रति किलो में मिलते थे.
विज्ञापन ने मचाई धूम
अंग्रेजी अखबार बिजनस ​स्टेंडर्ड ने अपने एक लेख में बताया है कि कैसे 80 के दशक की शुरुआत में निरमा ने अपनी गिरती बिक्री को फिर से उठा दिया. उस समय निरमा की बिक्री बहुत गिर गई थी और बाजार में उसकी स्थिति खराब हो रही थी. तब करसनभाई पटेल ने बाजार से पैसा इकट्ठा करके एक विज्ञापन ​बनाया. जिसमें उनकी बेटी को एक सफेद फ्रॉक में निरमा का जिंगल गाते हुए दिखाया जाता है.
यह विज्ञापन बहुत प्रसिद्ध हुआ और लोंगों के बीच निरमा को नई पहचान दे गया. अब तो लोग जब निरमा खरीदने दुकान पर जाते, तो उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता था. उस साल निरमा ने पूरे ​बाजार को हिला दिया और सबसे ज्यादा बिकने वाला डिटरजेंट बनकर अपने प्रतिद्वंद्वी हिंदुस्तान यूनिलीवर के ‘सर्फ’ से भी आगे निकल गया.
जारी है सफर
अब इस साल करसनभाई पटेल ने लफारजेहॉलसिम सीमेंट को 1.4 बिलियन डॉलर में खरीदा है, जो यह साबित करता है कि यह उद्योगपति रुकने वालों में से नहीं है. अंग्रेजी अखबार मिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि कैसे इस डील से निरमा को राजस्थान और उसके आसपास के क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में मदद मिलेगी.
सही मायनों में एक उद्योगपति करसनभाई पटेल, मीडिया से दूर रहते हैं लेकिन राष्ट्र के लिए योगदान करने से नहीं चूकते. उन्होंने साल 1995 में निरमा इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की, इसके बाद साल 2003 में निरमा यूनिवर्सिटी आॅफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी बनाई, जिसकी देखरेख निरमा एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन करती है. वर्ष 2004 में उन्होंने भारत में उद्यमियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से निरमालैब्स एजुकेशन प्रोजेक्ट शुरू किया. साल 2010 में करसनभाई पटेल को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.
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