नई दिल्ली. रसगुल्ला के ऊपर इंडस्ट्रियल प्रॉपर्टी राइट्स यानी भौगौलिक संकेत यानी जीआई टैग को लेकर उड़ीसा से चल रहे विवाद में पश्चिम बंगाल सरकार ने सरेंडर कर दिया है. बंगाल ने कहा है कि उसे बस बंगाल में तैयार किए जाने वाले रसोगुल्ला का जीआई टैग चाहिए, ना कि पूरी तरह से रसगुल्ला के ऊपर.
जीआई टैग वो टैग है जो किसी सामान के उत्पति की जगह को प्रमाणित करने के लिए दिया जाता है. रसगुल्ला को लेकर बंगाल का दावा रहा कि रसोगुल्ला उसके यहां बनना शुरू हुआ जबकि उड़ीसा का कहना है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर में 12वीं सदी से ही रसगुल्ला बनाया जा रहा है इसलिए रसगुल्ला पर जीआई टैग उड़ीसा का बनता है.
बंगाल सरकार ने चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री ऑफिस को पत्र लिखकर कहा है कि उसे पूरे का पूरे रसगुल्ला पर जीआई टैग नहीं चाहिए, वो बस बंगाल में खास तरह से तैयार किए जाने वाले रसोगुल्ला के लिए बंगाल को जीआई टैग चाहता है.
बंगाल सरकार का कहना है कि इस मसले पर उड़ीसा के साथ कोई विवाद नहीं है क्योंकि उड़ीसा का रसगुल्ला बंगाल के रसगुल्ले से रंग, बनावट, टेस्ट और रस के पैमाने पर पूरी तरह अलग है. बंगाल का कहना है कि वहां रसोगुल्ला को जिस तरह से बनाया जाता है वो बाकी राज्यों से अलग है.
बंगाल का कहना है कि पतली चासनी का इस्तेमाल सिर्फ रसोगुल्ला में होता है और उसका जो टेस्ट है वो बाकी जगह के रसगुल्ला से अलग है इसलिए रसोगुल्ला का जीआई टैग बंगाल को मिलना चाहिए. बंगाल ने वैसे जब पहली बार जीआई टैग अप्लाई किया था तब भी उसने बंगाली रसोगुल्ला के लिए ही जीआई टैग मांगा था. रसगुल्ला की उत्पत्ति को लेकर उड़ीसा के दावे के बाद विवाद हो गया था.
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जीआई टैग का फायदा ये है कि उस प्रोडक्ट का एक तो वो प्रामाणिक उत्पत्ति केंद्र मान लिया जाता है और दूसरा अगर एक्सपोर्ट की जरूरत हुई तो उसका फायदा उस प्रोडक्ट के जीआई टैग क्षेत्र को मिलता है. बंगाल में एक लाख से ज्यादा लोग रसोगुल्ला बनाने के रोजगार में लगे हैं और वहां का रसोगुल्ला विदेश भी भेजा जाता है. बता दें कि भारत में अब तक करीब 239 सामानों के लिए अलग-अलग राज्यों को जीआई टैग दिया जा चुका है जिसमें दार्जिलिंग चाय, मैसूर सिल्क जैसी चीजें शामिल हैं.