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Exclusive: SC तय करेगा मैसूर के स्वर्ण सिंहासन और सोने का हौदा का भविष्य !

नई दिल्ली. मैसूर के स्वर्ण सिंहासन और सोने का हौदा पर सरकार के कब्जे को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील विष्णु जैन ने अपनी याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की. याचिकाकर्ता ने कहा कि याचिका को दाखिल किए कई महीने हो गये है लेकिन फिर भी वो सुनवाई के लिए लिस्ट नहीं हो रही है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम आपकी याचिका पर 26 अगस्त को सुनवाई करेंगे.
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दरअसल सेवानिवृत्त प्रोफेसर पीवी नंजराजा ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की है कि सरकार मैसूर का स्वर्ण सिंहासन और सोने का हौदा अपने कब्जे में ले. याचिका में इस स्वर्ण सिंहासन के बदले मैसूर की महारानी को दी जा रही लाखों की रॉयल्टी को बंद करने की मांग भी की गई है. स्वर्ण सिंहासन और हाथी पर सजने वाला स्वर्ण हौदा मैसूर के दशहरे की विशेष शोभा होते हैं. समारोह में इनका प्रदर्शन होता है जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं. याचिकाकर्ता की मानें तो इन चीजों के प्रदर्शन के बदले सरकार की ओर से मैसूर की महारानी प्रमोदा देवी वाडयार को लाखों रुपये रॉयल्टी दी जाती है.
महारानी का बंगलौर पैलेस अधिग्रहण कानून मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सात जजों के समक्ष लंबित है. हालांकि स्वर्ण सिंहासन और सोने का हौदा सरकारी कब्जे में लेने की मांग हाई कोर्ट ठुकरा चुका है, जिसके बाद याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त प्रोफेसर पीवी नंजराजा उर्स ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. प्रोफेसर ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये याचिका दाखिल कर कहा गया था कि स्वर्ण सिंहासन और सोने का हौदा सरकार की संपत्ति है और इसके लिए राज घराने को हर साल दी जा रही रॉयल्टी बंद की जाए.
याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान के 26वें संशोधन के जरिये राज परिवारों का विशेष दर्जा और रॉयल्टी देने का नियम वापस ले लिया गया था. संशोधन 28 दिसंबर, 1971 से प्रभावी हो गया है. इस कानून के बाद सरकार ने राज परिवारों, राजाओं व राजकुमारों की संपत्तियां अधिग्रहित कर ली थीं. इस आधार पर मैसूर राज परिवार की संपत्तियां भी सरकार की हुईं, फिर रॉयल्टी क्यों दी जाती है?
याचिकाकर्ता ने आरटीआइ के जरिये हासिल जानकारी का हवाला देते हुए कहा कि 1975 और 1976 में मैसूर के उत्तराधिकारियों ने सरकार को पत्र लिख कर मैसूर पैलेस की संपत्तियों को कब्जे में लेने का अनुरोध किया था. इसके बाद कर्नाटक सरकार ने सारी संपत्ति कब्जे में ले ली, बस महल का थोड़ा सा हिस्सा राज परिवार के रहने के लिए छोड़ा गया. याचिकाकर्ता के अनुसार उस समय संपत्ति सौंपने की जो सूची है उसमें स्वर्ण सिंहासन और सोने के हौदे का जिक्र नहीं किया गया है, जबकि वे भी संपत्ति में शामिल होने चाहिए.
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि कर्नाटक में मैसूर पैलेस (अधिग्रहण और स्थानांतरण कानून) 1998 में पास हो गया था. इस कानून के पास होने के बाद भी ये दोनों वस्तुएं अब तक राज परिवार के पास बनी हुई हैं. हालांकि राज परिवार ने कानून को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है और मामला लंबित है.
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अधिग्रहण कानून को चुनौती देने वाली महारानी की याचिका में संवैधानिक मुद्दा ये है कि भारत में विलय के समय सरकार के साथ हुए राज घराने के करार को क्या संविधान के छब्बीसवें संशोधन अथवा बंगलौर पैलेस अधिग्रहण कानून से ऊपर माना जाएगा?
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