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24 हफ्ते की गर्भवती महिला का गर्भपात होगा या नहीं, सोमवार को SC सुनाएगा फैसला

नई दिल्ली. ये मामला इतना आसान नहीं है जितना दिखाई देता है क्योंकि हर दिन की देरी किसी की जिंदगी और मौत को तय करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी मुम्बई की रहने वाली 24 हफ्ते की गर्भवती महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान कही.
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शुक्रवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से SG रंजीत कुमार ने सुझाव दिया कि इस मामले में एक मेडिकल बोर्ड का गठन कर देते हैं जो महिला की जाँच कर तय करेगा की उसका गर्भपात किया जा सकता है या नहीं. इसके लिए AIIMS के डॉक्टर की एक टीम बनाई जाए जो महिला की जाँच करेगी, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि महिला मुंबई है और वो दिल्ली आने में सक्षम नहीं है. ऐसे में मुंबई में ही उसकी जाँच हो. तब महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा मुम्बई के KE मेडिकल हॉस्पिटल में जांच हो सकती है.
इसके बाद कोर्ट ने आदेश जारी देते हुए कहा कि मुम्बई के KE मेडिकल हॉस्पिटल में महिला का सुबह 10 बजे चेकअप होगा और सरकार सोमवार तक रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करेगी. सोमवार को मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ये तय करेगा की महिला के गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि हम ये बाद में तय करेंगे कि मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 जिसके मुताबिक 20 हफ़्ते से ज़्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं हो सकता, उसमें संसोधन हो सकता है या नहीं.
दरअसल मुम्बई की रहने वाली एक महिला ने इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और गर्भपात कराने की इजाज़त मांगी है. महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि वो बेहद ही गरीब परिवार से है उसके मंगेतर ने शादी का झांसा देकर उसके साथ बलात्कार किया और उसे धोखा देकर दूसरी लड़की से शादी कर लिया, जिसके बाद उसने मंगेतर के खिलाफ बलात्कार के तहत केस दर्ज किया है. महिला को जब पता चला कि वो प्रेग्नेंट है तो उसने कई मेडिकल टेस्ट कराये जिससे पता चला की अगर वो गर्भपात नहीं कराती तो उसकी जान जा सकती थी.
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2 जून 2016 को डॉक्टरों ने उसका गर्भपात करने से इंकार कर दिया क्योंकि उसे गर्भधारण किये 20 हफ्ते से ज़्यादा हो चुके थे. महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि 1971 में जब कानून बना था तो उस समय 20 हफ्ते का नियम सही था लेकिन अब समय बदल गया है अब 26 हफ़्ते बाद भी गर्भपात हो सकता है. याचिका में कहा गया है कि 20 हफ़्ते का कानून असंवैधानिक है. याचिका में ये भी कहा गया है कि इस कानून से उसकी व्यकितगत जीवन और निजता प्रभावित हो रही है.
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