नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया है जिसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के बरेली,आगरा और वाराणसी के मानसिक अस्पताल में कई महिलाएं और पुरुष पूरी तरह स्वस्थ होने के बावजूद मनोरोगियों के साथ रखे जा रहे हैं. ऐसे में कोर्ट मामले में दखल देकर उनकी अस्पताल से छुट्टी कराए और सरकार को उनके पुनर्वास के इंतजाम करने का आदेश दे.
कोर्ट ने क्या कहा?
मंगलवार को याचिकककर्ता गौरव बंसल की तरफ से गुहार लगाई गई. सुप्रीम कोर्ट इस जनहित याचिका पर जल्द सुनवाई करे. जिसपर कोर्ट ने पूछा की आप इस मामले में जल्द सुनवाई की जरूरत क्यों है. याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया है बरेली के मानसिक अस्पताल में करीब 70 महिलाएं और पुरुष पूरी तरह स्वस्थ होने के बावजूद मनोरोगियों के साथ रखे जा रहे हैं. ऐसे में कोर्ट इस पर जल्द सुनवाई करे.
जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा आपने याचिका हाई कोर्ट में दाखिल क्यों नहीं की. तब याचिकाकर्ता ने कहा कि कई मरीज केरला के भी है ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई करे. लेकिन कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इंकार करते हुए कहा कि वेकेशन के बाद अपनी याचिका पर जल्द सुनवाई की गुहार कीजिएगा.
‘स्वस्थ होने के बावजूद रह रहे हैं मनोरोगियों के साथ’
बता दें कि गौरव बंसल ने याचिका में उत्तर प्रदेश के सिर्फ बरेली का ही नहीं बल्कि आगरा और वाराणसी के मानसिक अस्पतालों का भी मुद्दा उठाया है, उन्होंने कहा है कि कोर्ट बरेली, आगरा और वाराणसी के मानसिक अस्पतालों को निर्देश दे कि वे पूरी तरह स्वस्थ हो चुके और छुट्टी दिए जाने लायक महिला और पुरुष मरीजों का नाम कोर्ट को बताएं. हालांकि याचिका में मुख्यता बरेली के मानसिक अस्पताल के हालात बयां किए गए हैं. उत्तर प्रदेश में बरेली के मानसिक अस्पताल में करीब 70 महिलाएं और पुरुष पूरी तरह स्वस्थ होने के बावजूद मनोरोगियों के साथ रखे जा रहे हैं.
‘अर्जी दाखिल के बाद भी नहीं दिया ब्योरा’
बंसल का कहना है कि उन्होंने सूचना कानून के तहत अर्जी दाखिल कर बरेली, आगरा और वाराणसी के मानसिक अस्पताल से मरीजों का पूरा ब्योरा मांगा था लेकिन अस्पतालों ने उन्हें सूचना मुहैया नहीं कराई. याचिकाकर्ता का कहना है कि वह स्वयं बरेली के मानसिक अस्पताल गया और मरीजों व अधिकारियों से मिला. उसने कई महिला और पुरुष मरीजों से बात की जो कि पूरी तरह स्वस्थ और सामान्य थे लेकिन वे मनोरोगियों के साथ ही एक ही वार्ड में रह रहे हैं.
‘अस्पताल से नहीं मिल रही है छुट्टी’
बंसल ने कहा कि लोग मानसिक अस्पताल से छुट्टी चाहते हैं और बाहर आकर सामान्य जीवन व्यतीत करना चाहते हैं. कुछ लोग तो 15 और 20 साल से वहां रह रहे हैं और बहुत पहले स्वस्थ हो चुके हैं लेकिन उनके परिवार का पता न होने के कारण वे बाहर नहीं जा सकतें. कहा गया है कि कोर्ट मामले में दखल देकर उनकी अस्पताल से छुट्टी कराए और सरकार को उनके पुनर्वास के इंतजाम करने का आदेश दे. याचिका में कानून और सम्मान के साथ जीवन जीने के संवैधानिक अधिकार का हवाला देते हुए स्वस्थ्य व्यक्ति को मनोरोगियों से अलग रखे जाने की मांग की गई है.