नई दिल्ली. देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव से चुनाव आयोग भी सहमत है, हालांकि इस पर अभी तक कोई फाइनल सहमती नहीं बनी है.
सरकार के इस प्रस्ताव पर इलेक्शन कमीशन ने कहा कि अगर सभी राजनीतिक पार्टियां इसके पक्ष हों तो इसपर विचार किया जा सकता है, हालांकि आयोग ने यह भी कहा कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने में काफी खर्च भी आएगा और भारी संख्या में ईवीएम मशीनें खरीदनी होगी. मशीनों को प्रत्येक 15 साल में बदलना भी होगा. आयोग के मुताबिक एक साथ चुनाव कराने में तकरीबन 9,284.15 करोड़ रुपये से ऊपर का खर्च आएगा. चुनाव आयोग ने इस संबंध में कानून मंत्रालय को एक पत्र भी लिखा है.
पहले भी हो चुके हैं एक साथ चुनाव
इससे पहले 1952 और 1957 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे, लेकिन 1967 में कई राज्यों में संयुक्त विधायक दल की सरकार बनी, जिसके बाद इस दल के विरोध के बाद एक साथ होने वाले चुनाव को बंद कर दिया. संयुक्त विधायक दल या ‘संविद’ भारत का एक राजनैतिक दल था. भारत के चौथे आम चुनावों में सन् 1967 में इसे भारी सफलता मिली थी. कई राज्यों में इसने कांग्रेस को हराकर सरकार बनायी और केन्द्र में भी कांग्रेस बहुत कम बहुमत से जीत पायी थी.। यह भारतीय जनसंघ और संयुक्त समाजवादी दल (संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी) के गठबंधन से बनी थी.