कोर्ट के इस फैसले से मथुरा हिंसा को लेकर चौतरफ़ा घिरी उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को बड़ी राहत मिल गई है. मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि पूरी याचिका में ये कही भी नहीं लिखा है कि राज्य सरकार की जांच में कोई कमी है. तब तक सीबीआई जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता जब तक राज्य सरकार की कर्रवाई में कमी से जनता में अविश्वास की स्थिति पैदा न हो. कोर्ट ने कहा कि एक जनहित याचिका हाई कोर्ट में पहले ही लंबित है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अर्जी वापस लेने को कहा है. साथ ही साथ यह भी कहा है कि अगर यह वापस नहीं लिया जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट इसे खारिज कर देगा. तब याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका को हाई कोर्ट में दाखिल करने की इजाजत मांगी.
दरअसल बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर पूरे घरना की सीबीआई जाँच की मांग की थी. याचिका में कहा गया था की मामले की सीबीआई जाँच से ही सच सामने आ सकता है.
बता दें याचिका में कहा गया था कि रामवृक्ष यादव 2014 से पार्क में एक समानांतर सरकार चला रहा था. जिसमें उसकी खुद की सरकार और सेना थी. बिना सरकार के समर्थन के ऐसा संभव ही नहीं है. याचिका में मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा गया है कि रामवृक्ष यादव कई नेताओं और मंत्रियों का करीबी है. 2014 से जवाहर पार्क में उसकी शस्त्र सेना थी लेकिन स्थानीय प्रशासन ने उसके खिलाफ कोई करवाई नहीं की. इतना ही नहीं उसका न तो सुभाष चंद्र बोस और न ही फॉरवर्ड ब्लॉक से कोई सम्बन्ध है.
याचिका में ये भी कहा गया था कि पार्क में अवैध रूप से कब्जा करने वाले 22 लोगों की मौत हो गई. जिसमें से 11 की मौत सिलेंडर ब्लास्ट से हुई थी. 23 पुलिस वालों को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जो गंभीर रूप से घायल थे. पुलिस ने हिंसा के बाद कैंप से 47 गन, 6 राइफल और 179 हैण्ड ग्रेनेड बरामद किये गए थे.