2019 लोकसभा चुनाव को लेकर राजनैतिक हलचल शुरू हो चुकी है. इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर विपक्षी दल लगातार सवाल उठाते रहे हैं. सूत्रों की मानें तो 17 विपक्षी दलों के नेता लोकसभा चुनाव के मद्देनजर चुनाव आयोग जाएंगे और मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत से मुलाकात कर 2019 में होने वाले आम चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग करेंगे.
नई दिल्लीः 2019 लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही रह गए हैं. मोदी सरकार विकास के मुद्दे पर आम चुनाव में उतरने की बात कह रही है तो विपक्षी एकता मोदी सरकार को सबसे कमजोर सरकार बताते हुए चुनावी अखाड़े में उतरने जा रही है. इस बीच विपक्ष एक बार फिर से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग करने जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 17 विपक्षी दलों के नेता जल्द चुनाव आयोग के दफ्तर जाएंगे और मुख्य चुनाव आयुक्त ओम प्रकाश रावत से 2019 के लोकसभा चुनाव इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के बजाय बैलेट पेपर से कराने की मांग करेंगे.
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक की थी. बैठक में इस बात पर आम सहमति बनी कि सभी पार्टियां जल्द चुनाव आयोग से मिलेंगी और 2019 के लोकसभा चुनाव ईवीएम से नहीं बल्कि बैलेट पेपर से कराने की मांग करेंगी. आयोग के पास जाने वाले 17 दलों में ममता बनर्जी की टीएमसी, राहुल गांधी की कांग्रेस, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, शरद पवार की नेशनल कांग्रेस पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ दक्षिण भारत की कई क्षेत्रीय पार्टियां होंगी.
हालांकि अभी यह साफ नहीं हुआ है कि यह दल कब चुनाव आयोग के पास इस मांग को लेकर जाने वाले हैं. बताते चलें कि कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी पार्टियां चुनाव के बाद EVM से छेड़छाड़ करने का आरोप लगा चुकी हैं. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद कई राजनैतिक दलों ने ईवीएम में गड़बड़ी को अपनी हार का जिम्मेदार ठहराया था. 2017 में यूपी, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में चुनाव के बाद हारने वाले अधिकतर दलों ने ईवीएम पर अपनी हार का ठीकरा फोड़ा था. पंजाब चुनाव के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे.
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इसी साल जनवरी में मुख्य चुनाव आयुक्त का पदभार ग्रहण करने वाले ओम प्रकाश रावत हो या फिर उनके पहले इस पद पर रहे अचल कुमार जोति, सभी आयुक्त ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपों को बेबुनियाद बता चुके हैं. बीते जून ओ.पी. रावत ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग को खारिज करते हुए कहा था, ‘ईवीएम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है क्योंकि मशीनें बोल नहीं सकतीं.’ उन्होंने कहा कि हारने वाली पार्टियों को अपनी हार के लिए किसी न किसी को तो जिम्मेदार ठहराना होता है. EVM की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं.
गौरतलब है कि देश में इन दिनों एक अलग जहरीली हवा फैली हुई है. यह हवा हमारी सांसों को प्रभावित नहीं कर रहीं बल्कि हमारी आत्मा को झकझोर रही है. विकास के दावों से इतर देश में मॉब लिंचिंग, हर रोज बच्चियों और महिलाओं से रेप-गैंगरेप के मामलों से पटे अखबारों के पन्ने, अपराधों का बढ़ता ग्राफ देश की एक अलग हाड़ कंपा देने वाली कहानी बयां करता है. ऐसे में अगर 2019 के लोकसभा चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाएंगे तो इसकी क्या गारंटी है कि 80 के दशक का वह दौर वापस नहीं लौटेगा जब देश में गुंडाराज हावी था. बूथ कैप्चरिंग बहुत सामान्य सी बात हुआ करती थी. असलहों की नोक पर मतदान पेटियों को सरेआम लूट लिया जाता था और लोकतंत्र का मखौल उड़ाया जाता था. अगर बैलेट पेपर से चुनाव होते हैं तो क्या हम इसके लिए तैयार हैं. अगर ऐसा होता है तो क्या पाकिस्तान की तरह अब हमारे देश में भी सुरक्षा के एहतियातन चुनाव सेना कराएगी.
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