‘पूजास्थलों में पुरुषों को जो इजाजत है वही महिलाओं को भी है’

बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जो महिलाओं को किसी पूजास्थल में प्रवेश करने से रोकता हो. कोर्ट ने कहा कि अगर पुरुषों को इसकी इजाजत है तो यही इजाजत महिलाओं को भी मिलनी चाहिए. कोर्ट ने यह बात एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही. याचिका वकील नीलिमा वर्तक और सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल की तरफ से दायर की गई है. इसमें अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती दी गई है.

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‘पूजास्थलों में पुरुषों को जो इजाजत है वही महिलाओं को भी है’

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  • March 31, 2016 4:35 am Asia/KolkataIST, Updated 9 years ago
मुंबई. बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है, जो महिलाओं को किसी पूजास्थल में प्रवेश करने से रोकता हो. कोर्ट ने कहा कि अगर पुरुषों को इसकी इजाजत है तो यही इजाजत महिलाओं को भी मिलनी चाहिए. कोर्ट ने यह बात एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही. याचिका वकील नीलिमा वर्तक और सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल की तरफ से दायर की गई है. इसमें अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती दी गई है.
 
मुख्य न्यायाधीश डी.एच. वाघेला और न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक की पीठ ने कहा कि कोई भी मंदिर या व्यक्ति अगर ऐसी कोई रोक लगाता है तो उसे महाराष्ट्र में छह महीने तक की जेल की सजा हो सकती है. न्यायमूर्ति वाघेला ने कहा, “अगर एक पुरुष देवी-देवता के समक्ष जाकर प्रार्थना कर सकता है, तो फिर महिला ऐसा क्यों नहीं कर सकती? यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं के अधिकारों की हिफाजत करे.” 
 
कोर्ट ने कहा कि अगर बात देवी-देवता की पवित्रता की है तो फिर राज्य सरकार को इस बारे में बयान देना चाहिए. कोर्ट ने महाराष्ट्र धर्मस्थल प्रवेश (प्रवेश अधिकार) कानून का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि किसी को मंदिर में प्रवेश से रोकने पर छह महीने की जेल हो सकती है. कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह इस कानून के बारे में आम लोगों को व्यापक रूप से बताए. 
 
कोर्ट ने सरकार के वकील ए. वागयानी से इस बारे में बयान देने को कहा कि क्या सरकार महिलाओं का मंदिर में प्रवेश सुनिश्चित करेगी. याचिका में मांग की गई है कि महिलाओं को न केवल शनि शिंगणापुर मंदिर में जाने दिया जाए, बल्कि इसके गर्भगृह में भी जाने दिया जाए. याचिका में कहा गया है कि महिलाओं को इससे वंचित करना उनके मूल अधिकारों का उल्लंघन है.
 

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