चंडीगढ़. यूनीफॉर्म्ड सर्विसेस में महिला अधिकारों से जुड़े मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि गर्भवती होने के कारण महिला को ज्वाइनिंग करने से नहीं रोका जा सकता.
कोर्ट ने कहा कि महिला अभ्यर्थी को आर्मी मेडिकल कॉप्र्स (सैन्य चिकित्सा कोर) में एक चिकित्साधिकारी के रूप में ज्वाइन करने से स्थाई रूप से नहीं रोका जा सकता. यह तर्क ठीक नहीं है कि महिला अभ्यर्थी चयन प्रक्रिया के दौरान गर्भवती हो गई थी. कोर्ट ने कहा कि आधुनिक भारत में ऐसी कार्रवाइयों के लिए कोई जगह नहीं है.
क्या है मामला
याचिकाकर्ता ने साल 2013 की शुरुआत में सैन्य चिकित्सा कोर में शार्ट सर्विस कमीशन के लिए आवेदन किया था. सभी परीक्षाओं और मेडिकल टेस्ट में पास होने के बाद उसे फरवरी 2014 में ज्वाइन करने को कहा गया. पद के लिए आवेदन करने और ज्वाइनिंग करने के बीच की अवधि में महिला याचिककर्ता गर्भवती हो गई. जब वह ड्यूटी ज्वाइन करने पहुंची तो उसे ज्वाइनिंग से इस आधार पर रोक दिया गया कि वह गर्भवती है.
महिला की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई और सलाह दी गई कि यदि वह सैन्य चिकित्सा कोर में शामिल होना चाहती है तो उसे नए सिरे से आवेदन करना होगा. महिला ने इसके खिलाफ साल 2014 में हाईकोर्ट की शरण ली थी.
जस्टिस हरिन्दर सिंह सिद्धू ने यह भी कहा कि प्रकृति की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सरकार को या तो मातृत्व अवकाश दना चाहिए अथवा पद को खाली रखना चाहिए ताकि बच्चे के जन्म के बाद महिला को वह पद दिया जा सके.
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