लखनऊ. उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त होने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा शपथ लेने से रोके गए रिटायर्ड जस्टिस वीरेंद्र सिंह के बारे में खुलासा हुआ है कि उन्हें हाईकोर्ट ने जुर्माने की सज़ा दी थी जिसे जमा नहीं करने पर उनके खिलाफ अवमानना का मामला भी चला है.
मिली जानकारी के अनुसार जस्टिस वीरेंद्र सिंह जब उपभोक्ता फोरम के चैयरमैन थे तो कोर्ट का एक आदेश नहीं मानने के बाद उन पर जुर्माना लगाया गया था. ये जुर्माना उन्होंने सरकारी पैसे से भरा जो ऑडिट में पकड़ा गया.
ऑडिट में जुर्माने की रकम सरकारी कोष से भरने का मामला सामने आने के बाद कोर्ट ने उन्हंर जुर्माने की रकम अपनी जेब से भरने का आदेश दिया लेकिन जस्टिस वीरेंद्र ने ऐसा नहीं किया तो उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला.
सज़ायाफ्ता आदमी नहीं बन सकता है लोकायुक्त
मोटा-मोटी ये कि जस्टिस वीरेंद्र सिंह को हाईकोर्ट ने जुर्माने की सज़ा सुना रखी है इसलिए वो कानून की नज़र में सज़ायाफ्ता हैं. कानूनी तौर पर सिर्फ जेल जाना ही सज़ा नहीं है. कोर्ट ने अगर किसी को जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई है तो वो भी सज़ा ही है. ऐसे में सज़ायाफ्ता होने की वजह से जस्टिस वीरेंद्र का लोकायुक्त बनना और भी मुश्किल हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने टाला था शपथ ग्रहण, 8 जनवरी को अगली सुनवाई
इस खुलासे से पहले से ही वीरेंद्र सिंह का लोकायुक्त पद खतरे में पड़ा हुआ है जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सीधे लोकायुक्त नियुक्त किया था. नियुक्ति के बाद वकील सच्चिदानंद गुप्ता ने पीआईएल डालकर कोर्ट को बताया कि जस्टिस वीरेंद्र की नियुक्ति को लेकर चयन समिति के सदस्य हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने आपत्ति जाहिर की थी.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वीरेंद्र को लोकायुक्त बनाने के अपने ही फैसले पर फिलहाल रोक लगा रखी है. सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार से सफाई मांगते हुए उनके शपथ ग्रहण को फिलहाल टाल दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 8 जनवरी को होनी है.
कौन हैं जस्टिस वीरेन्द्र सिंह
सुप्रीम कोर्ट को राज्य सरकार की तरफ से सौंपे गए पांच नामों में जस्टिस वीरेंद्र सिंह का भी नाम था. जस्टिस सिंह यूपी के ही मेरठ जिले के रहने वाले हैं और साल 2009 से 2011 तक इलाहबाद हाईकोर्ट के जज रह चुके हैं.
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