नई दिल्ली: दीप्ति जीवनजी का जन्म सूर्य ग्रहण के दौरान हुआ था। जन्म के समय उनका सिर छोटा था और होंठ व नाक थोड़े असामान्य थे। गांव के लोग उन्हें ‘मेंटल मंकी’ कहकर चिढ़ाते थे, जिससे दीप्ति अक्सर दुखी हो जाती थी। वह घर आकर फूट-फूटकर रोती थी। माता-पिता ने दीप्ति को संभालने की पूरी कोशिश की, लेकिन लोग उन्हें अनाथालय भेजने की सलाह देते थे। आज वही दीप्ति पैरालंपिक में मेडल जीतकर इतिहास रच चुकी हैं।
पेरिस पैरालिंपिक 2024 में दीप्ति जीवनजी ने महिलाओं की 400 मीटर टी20 स्पर्धा के फाइनल में कांस्य पदक जीतकर भारत का गौरव बढ़ाया। उन्होंने 55.82 सेकंड में दौड़ पूरी कर देश के लिए 16वां पदक जीता। इससे पहले, जापान के कोबे में हुई विश्व एथलेटिक्स पैरा चैंपियनशिप में उन्होंने भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता था।
दीप्ति का सफर चुनौतियों से भरा रहा। वह आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के कल्लेडा गांव की रहने वाली हैं। उनके माता-पिता, जीवनजी यादगिरी और जीवनजी धनलक्ष्मी ने बताया कि कैसे उनकी बेटी को तानों का सामना करना पड़ा। दीप्ति बौद्धिक विकलांगता के साथ पैदा हुई थी। कठिन आर्थिक हालात के बावजूद, परिवार ने कभी हार नहीं मानी।
दीप्ति की मां धनलक्ष्मी बताती हैं कि उनके पति के पिता के निधन के बाद उन्हें खेत बेचना पड़ा। पति को रोज़ाना केवल 100-150 रुपये की कमाई होती थी, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया। गांव के बच्चे दीप्ति को चिढ़ाते थे, जिससे वह घर आकर रोती थी। उसे खुश करने के लिए धनलक्ष्मी मीठे चावल या कभी-कभी चिकन बनाती थी।
पेरिस में दीप्ति के पदक जीतने की खबर से उनके पिता यादगिरी भावुक हो गए। उन्होंने कहा, “यह हमारे लिए बहुत बड़ा दिन है, लेकिन मैं अपनी रोज़ी-रोटी के लिए काम से छुट्टी नहीं ले सकता था। पूरे दिन मैं दीप्ति के पदक के बारे में सोचता रहा। उसने हमेशा हमें गर्व महसूस कराया है और यह पदक हमारे लिए बहुत मायने रखता है।”
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