राजकुमार शर्मा
इन दिनों विराट कोहली की बल्लेबाज़ी के तकनीकी पक्ष पर दुनिया भर में चर्चा चल रही है। यहां तक कि अपने समय के इंग्लैंड के बेहतरीन बल्लेबाज़ ग्राहम गूच ने विराट की चेन्नई की पारी को उनकी बैकफुट की शानदार पारी कहा है। वैसे यह सच है कि विराट मूलत: फ्रंटफुट के बल्लेबाज़ हैं लेकिन वह स्थिति के अनुसार अपने खेल को ढाल लेते हैं। वह देख लेते हैं कि कहां गेंद स्किड कर रही है और कहां नहीं कर रही। उसके हिसाब से वह अपनी रणनीति बनाते हैं।
वैसे एडिलेड में उनके फ्रंटफुट खेल पर भी मुझे काफी कुछ पॉज़ीटिव पढ़ने को मिला। दरअसल जहां पिच की प्रवृति अलग हो, तभी वह अपनी तकनीक में बदलाव करते हैं। उन्हें प्रयोग करना पसंद है। जिस तरह क्रिकेट के एक्सपर्ट ड्राइव लगाने के लिए ऊपर वाले हाथ का ही ज़्यादा इस्तेमाल करने के लिए कहते हैं लेकिन विराट बॉटम हैंड से भी कवर ड्राइव बखूबी लगाते हैं। इसी तरह आप देखेंगे कि मोइन अली पर उन्होंने ऑफ स्टम्प का गार्ड लिया। दरअसल मोइन काफी मुश्किल बॉलर हैं। कई बार मोइन को भी नहीं पता होता कि उनकी कौन सी गेंद सीधी निकल जाएगी। उन्होंने विराट को कई बार आउट किया है। उनकी कई गेंदें ऑफ पर टिप्पा पड़कर बिना टर्न हुए सीधी चली जाती है। विराट इसीलिए उनके सामने ऑफ का गार्ड ले रहे थे जिससे उनकी ऐसी गेंदों को छोड़ सकें। वास्तव में सीरीज़ में भारतीय पिचों पर स्पिनरों को अच्छा बाउंस मिला है, जिन्हें खेलना थोड़ा जोखिम भरा होता है। ऐसी गेंदों का सामना बैकफुट पर बेहतर तरीके से किया जा सकता है। वही विराट ने किया। ऐसी स्थिति में गेंदबाज़ की कोशिश होती है कि फुल लेंग्थ की गेंदे करके बल्लेबाज़ को फ्रंटफुट पर ड्राइव के लिए मजबूर करें।
अंत में मैं विराट के फैंस से अपील करता हूं कि अगर विराट कोहली पिछले काफी समय से सेंचुरी नहीं बना पा रहे हैं तो इसके लिए वे परेशान न हों क्योंकि ऐसा नहीं है कि वह फॉर्म में नहीं हैं। उन्होंने हाल में कई अच्छी पारियां खेली हैं। मुझे इस दौरान उनकी बल्लेबाज़ी में कोई खामी नहीं लगती। यह ठीक है कि इस दौरान वह उछाल लेती गेंद पर बहुत जल्दी आउट हुए हैं या फिर पैट कमिंस की वाइड गेंद का पीछा करते हुए भी वह आउट हुए। दरअसल, दोनों ही बार उनकी कोशिश शुरू से अटैक करने की थी। वह आक्रामक पारी खेलकर मनोवैज्ञानिक तौर पर बढ़त लेना चाहते थे। यह सब उनकी और टीम इंडिया की रणनीति का हिस्सा था। ऐसे समय में बल्लेबाज़ की कोशिश यही होती है कि गेंदबाज़ को हावी न होने दिया जाए। कई बार ऐसी चीज़े कारगर हो जाती हैं और कई बार नहीं हो पातीं लेकिन इन सब बातों से परेशान नहीं होना चाहिए।
(लेखक विराट कोहली के कोच हैं और द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता हैं)
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