Sports In Covid 19 Time: कोविड-19 की समस्या की वजह से इन दिनों खेल बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इसके बाद का समय खासकर खिलाड़ियों के लिए काफी चैलेंजिंग हो गया है. इसकी वजह से 6 से 8 महीने तक वैसी सीरियस ट्रेनिंग सम्भव नहीं है जो ओलिम्पिक की तैयारी के लिए ज़रूरी है लेकिन वहीं खिलाड़ियों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो खिलाड़ी अपने खेल के बिना नहीं रह सकते. उन्हें उम्मीद है कि सबकुछ धीरे-धीरे सामान्य हो जाएगा. फिर भी इस दौरान खिलाड़ियों ने अपनी फिटनेस पर काम किया लेकिन धीरे-धीरे खेलों का करवां शुरू होने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा. अब खिलाड़ियों में भी इस बात को लेकर आत्मविश्वास आ जाएगा कि कोरोना के साथ भी जीया जा सकता है. बस उनमें इस बीमारी को लेकर पैदा हुए डर को दूर करने की ज़रूरत है. ज़रूरत सावधानी के साथ अपने खेलों को शुरू करने की है.
पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा नुकसान खेलों से ज़्यादा खेलों की इंडस्ट्री का हुआ है. खिलाड़ियों के अलावा टीवी स्पॉन्सर्स, अन्य स्पॉन्सर्स और पूरी इंडस्ट्री इससे बुरी तरह प्रभावित हुई है. अब इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि खेल जब पूरी तरह से बहाल हो जाएंगे तो उनकी स्पॉन्सरशिप फीस में कटौती न हो. इतना ही नहीं, एथलीटों को भी अपनी ट्रेनिंग का फिर से कार्यक्रम बनाने की ज़रूरत है. फिटनेस दूसरी बड़ी चुनौती है क्योंकि घर में फिटनेस के लिए मेहनत करना और फील्ड पर मेहनत करने में फर्क है. कोशिश यही होगी कि सामान्य स्थिति में आने के लिए धीरे-धीरे पुरानी स्थिति में आया जाए.
मेरे समय की एथलेटिक्स और आज की एथलेटिक्स में बड़ा बदलाव एक्सपोज़र और सुविधाओं का बढ़ना है. आज उस समय की तुलना में पहचान भी अधिक मिलती है. इसमें कोई दो राय नहीं कि आज सरकार ज़्यादा सक्रिय हो गई है. ग्रास रूट लेवल पर ध्यान दिया जाने लगा है। खेलो इंडिया के ज़रिये प्रतिभाओं को खोजने का काम भी शुरू हो गया है. ग्रामीण और शहरी इलाके सभी इसके साथ जुड़ गये हैं. अब ये देश भर के तमाम ज़िलों पर निर्भर करता है कि वो अपने यहां खेलों को कितना प्रमोट करते हैं. हमारे समय में स्थिति बिल्कुल अलग थी. स्टेट चैम्पियनशिप और नैशनल चैम्पियनशिप सहित गिनती की ही इवेंट हमें मिल पाती थी.
मैं बैंगलुरु शहरी ज़िला एथलेटिक्स एसोसिएशन की अध्यक्ष होने के नाते ग्रास रूट लेवल पर खेलों को बढ़ावा देने का काम कर रही हूं. ये कार्यभार सम्भालते ही मेरा पहला लक्ष्य स्कूली स्तर पर खेलों को बढ़ावा देना था. मुझे दुख है कि मेरे कार्यभार सम्भालने से पहले स्कूली स्तर पर खेलों की हालत स्कूली स्तर पर बहुत खराब हो गई थी. उसे रिवाइव करने के अलावा मैंने डिस्ट्रिक लेवल पर भी खूब ध्यान दिया जिससे वहां हर साल डिस्टिक्ट चैम्पियनशिप आयोजित की जाने लगी. हमने अंडर 12, 14, 16 और 18 आयु वर्ग की आयु वर्ग की चैम्पियनशिप शुरू कीं. ओपन और स्कूल स्तर की चैम्पियनशिप में हमें काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला. इसके साथ ही हमने क्लब स्तर पर भी चैम्पियनशिप आयोजित करके टैलंट खोजने का काम किया और ये काम आज भी चल रहा है. मुझे खुशी है कि वहां स्कल ओलिम्पिक जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही हैं और हमारे क्षेत्र से टैलंट राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी भागीदारी दर्ज करने में सफल रहा है, जो पहले करीब-करीब खत्म हो चुका था.
आज मुझसे लोग पूछते हैं कि आपको बतौर एथलीट कहें, सोशल वर्कर कहें, शिक्षाविद् कहें या फिल्म एक्टर कहें, मैं उन्हें यही कहती हूं कि मुझे एथलीट ही रहने दें क्योंकि एथलीट होने के नाते ही मेरे लिए ये सब अवसर पैदा हुए हैं. ज़रूरत मौके को भुनाने की होती है. मैंने ऐसे मौकों का फायदा उठाया.
मैं वो पल भला कैसे भूल सकती हूं जब मैंने उस पीटी ऊषा को हराया जो एशिया की सर्वश्रेष्ठ एथलीट थी. तब बहुतों ने कहा कि ये एक `फ्लूक` था. हालांकि उस वक्त मुझे इसका बहुत दुख हुआ लेकिन जब मैंने दूसरी बार पीटी ऊषा को हराया तो हर किसी ने मुझे बहुत सराहा. मुझे पूरे खेल जगत से बहुत प्यार मिला. वास्तव में वह पल मेरे लिए यादगार थे क्योंकि पीटी ऊषा जैसी एथलीट को हराना आसान नहीं था. मैंने एथलेटिक्स से जुड़े पलों का खूब लुत्फ उठाया और आज एथलीटों से मेरी अपील है कि वो भी ऐसे पलों को यादगार बनाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाएं.
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