हर पदक, हर अवॉर्ड किसी भी खिलाड़ी के लिए काफी मायने रखता है लेकिन अब अर्जुन अवॉर्ड मिलने के बाद ऐसा लग रहा है कि मेरी बरसों की मेहनत साकार हो गई। इसे अपने करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं।
मैने जब एशियन चैम्पियनशिप का पदक जीता तो वही सबसे बड़ी उपलब्धि लगती थी। इसके बाद जब कॉमनवेल्थ गेम्स का गोल्ड जीता था तो वह उससे भी बड़ी उपलब्धि लगने लगी लेकिन जब कज़ाकिस्तान के शहर आस्ताना में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मेडल जीता तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वह उपलब्धि किसी महाराष्ट्रियन पहलवान की विश्व चैम्पियनशिप में सबसे बड़ी उपलब्धि थी। वैसे महाराष्ट्र से ही नरसिंह यादव भी 2015 में लास वेगास में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मेडल जीत चुके थे लेकिन किसी महाराष्ट्रियन पहलवान की यह पहली बड़ी उपलब्धि थी लेकिन अब मुझे लगता है कि मेरे अब तक के सभी पदकों का ईनाम है अर्जुन पुरस्कार। मेरी पिछले 15 साल की मेहनत सफल हो गई।
वर्ल्ड चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल में मैं बहुत कम अंतर से हारा। यही स्थिति एशियाई चैम्पियनशिप में भी देखने को मिली। हालांकि उस वक्त मैं थोड़ा हताश हो गया था कि मैं ब्रॉन्ज़ मेडल से आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा लेकिन देशवासियों की शुभकामनाएं मेरे काम आईं। मेरा सफर अभी खत्म नहीं हुआ है। मुंझे एक सितम्बर से सोनीपत में शुरू होने वाले नैशनल कैम्प का बेसब्री से इंतज़ार है। मैं आगे भी बहुत से खिताब जीतना चाहता हूं। कैम्प में मुझे अच्छा खासा अभ्यास मिलेगा। इस वक्त मेरा वजन 62 से 63 किलो है। पीछे मैंने 61 किलो वजन वर्ग में भाग लिया है। मेरी दिली इच्छा ओलिम्पिक में भाग लेने की है। मैं अपने वजन को कम करके 57 किलो पर लाना चाहता हूं। अगर फेडरेशन मुझे मौका दे तो मैं 57 किलोग्राम वजन में ओलिम्पिक ट्रायल में उतरना चाहता हूं क्योंकि मेरा सपना ओलिम्पिक पदक है। अगर मैं वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पदक जीत सकता हूं तो ओलिम्पिक में पदक जीतना नामुमकिन नहीं है।
फिलहाल मैं नासिक स्थित महाराष्ट्र पुलिस एकेडमी के सेंटर में प्रैक्टिस कर रहा हूं। वहा जिम से लेकर हर तरह की सुविधा है। महाराष्ट्र पुलिस में डीएसपी का ओहदा सम्भालने के बाद से मैं चाहता हूं कि मैं महाराष्ट्र और देश का नाम रोशन करूं। मेरे माता-पिता, कोच हरिशचंद्र बिराजदार और काका पवार ने मेरी बहुत मदद की है। बिराजदार सर तो मेरे बचपन के कोच हैं। ये कॉमनवेल्थ गेम्स क्या होते हैं, अर्जुन पुरस्कार क्या होता है, इन सबके बारे में मैंने सबसे पहले उनसे ही सुना था। उनकी मृत्यु के बाद अंतरराष्ट्रीय पहलवान काका पवार ने मुझे कुश्ती के गुर सिखाए। दोनों गुरु मेरे जीवन में खास महत्व रखते हैं। महाराष्ट्र की कुश्ती प्रेमी जनता ने भी मुझे बहुत प्यार दिया। मेरे खूब स्वागत समारोह आयोजित किए गए। महाराष्ट्र से पहले मैं रेलवे में कार्यरत था। वहां भी कुश्ती का माहौल था। आज भी मैं उन सबके सम्पर्क में हूं। उन सबका आशीर्वाद हमेशा साथ रहा। अब मैं उम्मीद करता हूं कि फेडरेशन का सहयोग मुझे पहले की तरह मिलता रहेगा और फेडरेशन मुझे ओलिम्पिक भागीदारी में मेरा साथ देगी और मुझे 57 किलो के ओलिम्पिक वेट में ट्रायल देने का अवसर देगी।
(लेखक अर्जुन पुरस्कार के लिए चुने गए हैं और कॉमनवेल्थ गेम्स के गोल्ड मेडलिस्ट होने के अलावा वर्ल्ड चैम्पियनशिप के भी मेडलिस्ट हैं)
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