नई दिल्ली: बात करें अगर क्रिकेट इतिहास के सबसे पहले टेस्ट मैच की तो वो 1877 में पहली बार इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था.उसके कई दशकों बाद वनडे क्रिकेट की शुरूआत हुई जिसमें वाईट बॅाल को परिचय कराया गया था. काफी समय से टेस्ट में लाल गेंद से वहीं सीमीत ओवर्स में […]
नई दिल्ली: बात करें अगर क्रिकेट इतिहास के सबसे पहले टेस्ट मैच की तो वो 1877 में पहली बार इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था.उसके कई दशकों बाद वनडे क्रिकेट की शुरूआत हुई जिसमें वाईट बॅाल को परिचय कराया गया था. काफी समय से टेस्ट में लाल गेंद से वहीं सीमीत ओवर्स में सफेद गेंद से खेला जा रहा है और लगभग सभी क्रिकेट प्रेमीयों के मन में एक बार यह सवाल जरूर उठा होगा, टेस्ट मैच लाल गेंद की बजाय सफेद से गेंद क्यों नहीं खेली जाती हैं .
बता दें कि टेस्ट मैच में लाल गेंद का इस्तेमाल किए जाने कि कई बड़ी वजह है. एक वजह यह भी है कि टेस्ट मैच दिन में खेले जाते हैं. ऐसे में लाल गेंद लंबे समय तक देख पाना आसान होता है. टेस्ट मैच में एक दिन में 90 ओवर का खेल होता हैं, ऐसे में लाल गेंद ज्यादा टिकाऊ साबित होती है. वहीं सफेद गेंद जल्दी पुरानी होती है. वहीं लाल गेंद सफेद गेंद की तुलना में 70-80 ओवर तक बेहतर स्तिथ में बनी रहती है. बता दें कि टेस्ट मैचों में 80 ओवर के बाद गेंद बदलने के नियम है.
सफेद गेंद जब तक नई रहती है तब तक कई डिग्री स्विंग करती है. हालांकि टी-20 क्रिकेट आने के बाद वाईट बॅाल मैचों में रिवर्स स्विंग ज्यादा देखने को मिलता है. वहीं 50 ओवर्स के फॉर्मेट में जबसे दोनों छोर से नई गेंदों का नियम लागू किया गया है उस वक्त से रिवर्स स्विंग कम देखने को मिलता है.हालांकि ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि सफेद गेंद में एक समय के बाद क्रेक आ जाता है.
वहीं लाल गेंद इसकी तुलना में बहुत अलग है 40-50 ओवर्स के बाद गेंद वापस स्विंग होना स्टार्ट हो जाती है. ऐसा में होता ये है कि गेंद पुराना और खस्ता होने पर भी रिवर्स स्विंग होता है और गेंदबाजों के फायदा मिलता है. दरअसल टेस्ट क्रिकेट में अगर सफेद गेंद का इस्तेमाल करेंगे तो वो बात नहीं रह जाएगी जो लाल गेंद से खेलने में रहती है और ये मुख्य वजह है लाल गेंद से टेस्ट मैच खेले जाने की.
यह भी पढ़ें :-
कोहली का चमत्कार, हनुमान चालीसा के बाद ‘ओम नमः शिवाय’ का जाप, चार शतक ठोके