Kirti Azad on Chetan Chauhan: भारतीय टीम के पूर्व खिलाड़ी कीर्ति आजाद ने दिवंगत पूर्व खिलाड़ी चेतन चौहान को याद करते हुए भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान के बारे में बात की है. कीर्ति आजाद ने कहा चेतन चौहान साहब एक गोल्डन हार्ट वाले व्यक्तित्व थे. उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी. वह मेरे सीनियर थे लेकिन अच्छे दोस्त थे. उनका जाना युवा खिलाड़ियों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है.
Kirti Azad on Chetan Chauhan: चेतन चौहान साहब एक गोल्डन हार्ट वाले व्यक्तित्व थे. उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी. वह मेरे सीनियर थे लेकिन अच्छे दोस्त थे. उनका जाना युवा खिलाड़ियों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है, देश के लिए बड़ी क्षति है. जिन दिनों मैंने डीडीसीए में भ्रष्टाचार उजागर किया तो चेतन चौहान भी मेरी इन सब बातों से इत्तेफाक रखते थे.
1981 में जब मैंने वैलिंग्टन टेस्ट में अपने करियर की शुरुआत की, उस टेस्ट में चेतन चौहान टीम के ओपनिंग बल्लेबाज़ थे. सुनील गावसकर के साथ उन्होंने देश को टेस्ट में अनेक मौकों पर काफी अच्छी शुरुआत दिलाई. दोनों के बीच कैमिस्ट्री इतनी अच्छी थी कि दोनों ने 11 बार सेंचुरी पार्टनरशिप करके टीम को मज़बूत आधार दिया. लाहौर में इमरान और सरफराज़ के सामने इनकी सेंचुरी पार्टनरशिप के दौरान उन्होंने 93 रन की पारी खेली. पर्थ में उनकी 88 रन की पारी के दौरान उन्होंने जैफ थॉमसन का डटकर सामना किया जबकि 1981 में एडिलेड में डेनिस लिली जैसे दिग्गज गेंदबाज़ों के सामने उन्होंने 97 रन की पारी खेली.
जो दर्जा 90 के दशक के आखिरी पड़ाव में और और सन दो हज़ार के बाद राहुल द्रविड़ का था, वही कुछ कमाल 70 और 80 के शुरू में चेतन चौहान को हासिल हुआ. दोनों द ग्रेट वॉल थे. उन्होंने एक से बढ़कर एक तेज़ गेंदबाज़ का डटकर सामना किया. जैफ थॉमसन से लेकर डेनिस लिली को वह बिना डरे खेले और उनके सामने बड़ी पारियां खेलकर उन्होंने भारत को मज़बूत आधार दिया. वह वास्तव में खतरनाक गेंदबाज़ों के सामने एक दीवार का काम किया करते थे और अपने विकेट के महत्व के समझते थे.
उनके साथ मेरा कुछ संयोग ऐसा हुआ कि जब मुझे ऑस्ट्रेलिया के दौरे के लिए वनडे टीम में चुना गया तब चेतन जी टीम में नहीं थे. जब मैंने 1978 में दिल्ली की ओर से रणजी ट्रॉफी का पूरा सीज़न खेला तब वह ऑस्ट्रेलिया गए हुए थे. 1979-80 का एक घरेलू सीज़न ज़रूर ऐसा था, जब हम एक साथ खेले थे. मैंने उस सीज़न में ही समझ लिया था कि उनकी बात ही कुछ और है. वह बेहद मृदुभाषी थे. इसी सीज़न में उत्तर भारत की एक टीम के खिलाफ मुझे उनके साथ एक बड़ी पार्टनरशिप करने का अवसर मिला. हम दोनों के खेलने की शैली बिल्कुल विपरीत थी. मैं अटैकिंग क्रिकेट खेला करता था जबकि चेतनजी बहुत आराम से अपनी पारी को जमाया करते थे और लम्बी लम्बी पारियां खेलने में यकीन किया करते थे. ऐसा व्यक्तित्व जब दुनिया से जाता है तो दुख तो होता ही है.
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