खेल

Divya Kakran Arjun Award: अर्जुन पुरस्कार नामित पहलवान दिव्या काकरान बोलीं- अपने बैकग्राउंड को देखती हूं तो भावुक हो जाती हूं

मैंने अर्जुन पुरस्कार की पिछले साल भी उम्मीद की थी क्योंकि मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। अब पुरस्कार मिलने से खुश हूं। आज जब मैं अपने बैकग्राउंड को देखती हूं तो मैं काफी भावुक हो जाती हूं क्योंकि कभी हमारे पास कई मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने के भी पैसे नहीं होते थे। आज मैं अपने परिवार के दम पर इस मुकाम तक पहुंची हूं कि मेरे पास रेलवे में सीनियर टिकट इग्जामिनर की नौकरी है। देश के लिए जीते काफी संख्या में पदक हैं और मुझे अर्जुन पुरस्कार से नवाजा जाने वाला है। ये मेरे लिए एक सीढ़ी की तरह है। मुझे देशवासियों की इसी तरह शुभकामनाएं मिलती रहीं तो मुझे विश्वास है कि एक दिन मैं ओलिम्पिक में भी पदक जीतकर लौटूंगी।

मैं यह नहीं कहूंगी कि पुरस्कार मिलने से मेरी ज़िम्मेदारी में इज़ाफा हो गया है। दरअसल, देश के लिए कुछ अच्छा करना मेरा शुरू से सपना रहा है। जब देश के लिए खेली तो उसी दिन से यह ज़िम्मेदारी आ गई थी कि मुझे बहुत कुछ करना है। इसी सोच से मैं एशियाई खेलों और कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने में क़ामयाब रही। एशियन चैम्पियनशिप में गोल्ड जीतने पर तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन मैंने अपने पांव हमेशा ज़मीन पर रखे और यही सोच रखी कि मैं लगातार अच्छा प्रदर्शन करूं और अपनी ग़लतियों से सबक सीखूं। इन दिनों अपनी कमियों में सुधार का सिलसिला चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जहां भी मुझसे कोई ग़लती हुई, उसे दूर करने की दिशा में मैंने खूब काम किया। आस्ताना (कज़ाकिस्तान) में वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी जो ग़लती की, उससे दूर करने की मैंने कोशिश की। फिलहाल मेरा लक्ष्य ओलिम्पिक खेलों में भागीदारी करना और फिर उस लक्ष्य को पाने के बाद ओलिम्पिक पदक जीतना है।

जब सुशील ने 2008 के बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में देश को कुश्ती का पदक दिलाया तो उस समय मैं बहुत छोटी थी। मुझे अपने पिता से पता चला था कि ये ओलिम्पिक का आयोजन है और यहां पदक जीतना काफी मायने रखता है। उसी दिन से मैंने ठान लिया था कि मुझे भी इस मुकाम तक पहुंचना है और उसके लिए मैं जीतोड़ मेहनत कर रही हूं।

ओलिम्पिक क्वॉलिफाइंग में मेरी जो प्रतिद्वंद्वी हैं, उनके खेल पर मैं बारीकी से नज़र बनाए हुए हूं। लक्ष्य उन्हें हराकर एक सीढ़ी आगे चढ़ना है। मेरी इस प्रतियोगिता के लिए अच्छी तैयारी है। मुझे खुशी है कि अब मैं अपनी कंधे की इंजरी से पूरी तरह उबर चुकी हूं। 15-20 दिन के आराम के बाद मैं अब खुद को ज़्यादा तरोताज़ा महसूस कर रही हूं।

पिछले दिनों मैंने हिमाचल के मंडी में हाई एल्टीट्यूड में प्रैक्टिस की। वहां के जोगिंदरनगर में हुई प्रैक्टिस का मुझे काफी फायदा हुआ। मेरा छोटा भाई दीपक इन दिनों मेरा स्पेयरिंग पार्टनर है। उसका वजन भी 110 किलो है। उसके साथ वेट ट्रेनिंग से लेकर ग्रीको स्टाइल में प्रैक्टिस करने का मुझे काफी फायदा हुआ है। मुझे विश्वास है कि दीपक आने वाले समय में सुपर हैवीवेट वर्ग में देश की ओर से खेलेगा। इससे पहले मैं अपने दूसरे भाई देव के साथ प्रैक्टिस किया करती थी।  

अपने कोच व्लादीमिर से भी मुझे रेसलिंग के टिप्स मिलते रहते हैं। वह मेरे कुश्ती के केंद्र गुड़मंडी आते हैं। उन्होंने मेरी तकनीक पर खूब काम किया है। मैं जिन तकनीकों को भूल जाती हूं, वह मुझे उन तकनीकों का अभ्यास कराने में मेरी मदद करते हैं जिससे मेरा काम काफी आसान हो गया है। इसके अलावा ओलिम्पिक गोल्ड क्वेस्ट के ऑनलाइन सेशन से भी काफी मदद मिलती है।

अब तक के सफर में मैं अपनी सारी सफलताओं का श्रेय अपने परिवार को देती हूं। मेरे पूरे परिवार ने मेरे साथ खूब मेहनत की है। साथ ही मैं अपने सभी शुभचिंतकों का भी आभार व्यक्त करती हूं। फेडरेशन भी हमें आगे बढ़ाने के लिए नित नये प्रयास करती है। एक सितम्बर से लखनऊ में लगने वाले नैशनल कैम्प को लेकर हम ज़्यादातर पहलवानों के मन में एक अलग तरह का डर है। कोरोना के संक्रमण का डर और पहलवानों के कैम्प में बहुत कम संख्या में पहुंचने की उम्मीद होने से ऐसा लगता है कि कैम्प का बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा लेकिन फिर भी फेडरेशन अपने निर्णय पर क़ायम रहती है तो हम उनके फैसले के साथ हैं।

(लेखिका को कुश्ती में अर्जुन पुरस्कार के लिए नामित किया गया है और वह मौजूदा एशियाई चैम्पियन हैं)

Aanchal Pandey

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