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Deepak Hooda Interview: कड़े संघर्ष से निकला कबड्डी का नया और चमकता हुआ सितारा दीपक हुड्डा

नई दिल्ली:  भारतीय कबड्डी टीम के कप्तान दीपक हुड्डा जीवन में अच्छे खासे संघर्ष के बाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। उन्हें 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर अर्जुन पुरुस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इस पुरस्कार के बारे में उन्होंने कहा कि मेहनत का ईनाम मिला और इसके लिए वह अपने सभी प्रशंसकों और खेल प्रेमियों के आभारी हैं।

दीपक ने अपने संघर्ष के बारे में कहा कि जब वह मात्र 4 साल के थे तो उनकी माँ का साया उनके सिर से उठ गया। पिता किसान थे उन्ही के साथ खेती बाड़ी कर घर का गुजारा चलता था लेकिन जब 12 वीं में पहुंचे तो पिता भी चल बसे। बचपन में आर्थिक तंगी का सामना किया। बहन सहित उनके दोनों बेटी-बेटे का लालन-पालन भी उनके ही कन्धों पर आ गया। पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने की ही वजह से उन्हें पढाई छोड़ने पड़ी तथा गांव के ही शिवाजी स्कूल में करीब डेढ साल तक अध्यापन कार्य किया। स्कूल से छुट्टी होते ही दोपहर ढाई बजे घर पहुंचते ही खेतीबाड़ी के लिए खेतों में किसानी कर कुछ खर्चा पानी जुटा पाते थे।

दीपक ने कहा कि पढाई में कुछ कर नहीं पाया था, और फिर कबड्डी में कोई खर्चा भी नहीं था। खेती-बाड़ी करने की वजह से शरीर भी ताकतवर बन गया था। उसी दौरान हरियाणा पुलिस में कार्यरत पुलिसकर्मी नरेंद्र गुप्ता ने उन्हें कबड्डी को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्हें जोगिन्दर और महिपाल जैसे कबड्डी कोचों का साथ मिला जिससे उनके खेल में सुधार हुआ। वैसे उनके पहले प्रोफेशनल कबड्डी कोच जगमाल सिंह थे। दीपक मानते हैं कि कोच की वजह से मेरे खेल में बहुत सुधार हुआ और जनवरी, वर्ष 2014 में मैंने पटना में आयोजित हुए राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता. वहीँ फेडरेशन के अध्यक्ष गहलोतजी सहित अन्य खेल सिलेक्टरों ने मेरे खेल की प्रशंसा की और मुझे भी लगा जैसे मेरी मेहनत रंग ला रही है. उसके बाद मैंने भी फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

दीपक कहते हैं कि उन्हें खुशी है कि भारतीय कबड्डी टीम तीन बार वर्ल्ड कप जीत चुकी है और वह 2016 वर्ल्ड कप विजेता टीम के सदस्य थे। पिछले वर्ल्ड कप में कुल अठारह देशों की टीमों ने हिस्सा लिया। मतलब साफ है कि कबड्डी खेल की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ रही है। हमारे खेल मंत्री किरण जीजू भी कबड्डी को ओलिम्पिक में आयोजित करवाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

अपनी आगे की योजनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि फिलहाल तो वह अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबलों में अपनी टीम को बहुत से खिताब दिलाना चाहते हैं। इसके अलावा वह रोहतक के आस-पास के गाँव के बच्चों को सुबह शाम ट्रेनिंग दे रहे हैं, उसका विस्तार करना चाहते हैं जिससे कुछ खेलों के प्रति समर्पित बच्चे खेलों में और अच्छा कर सकें।

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Aanchal Pandey

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