नई दिल्ली: बर्मिंघम में खेले जा रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में शनिवार का दिन भारत के लिए काफी यादगार रहा। इस दिन भारत ने वेट लिफ्टर में चार पदक अपने नाम किए। शुरुआत में संकेत महादेव ने और फिर मीराबाई चानू, गुरुराजा से होते हुए बिंदियारानी देवी ने भारत को पदक दिलवाया। बिंदियारानी देवी यहां तक […]
नई दिल्ली: बर्मिंघम में खेले जा रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में शनिवार का दिन भारत के लिए काफी यादगार रहा। इस दिन भारत ने वेट लिफ्टर में चार पदक अपने नाम किए। शुरुआत में संकेत महादेव ने और फिर मीराबाई चानू, गुरुराजा से होते हुए बिंदियारानी देवी ने भारत को पदक दिलवाया। बिंदियारानी देवी यहां तक पहुंची हैं उसमें कुछ तो टोक्यो ओलिंपिक-2020 की कांस्य पदक विजेता मीराबाई चानू का भी योगदान रहा है। बिंदियारानी 55 किलोग्राम भारवर्ग में महज एक किलो के अंतर से स्वर्ण पदक से चूक गई।
बिंदियारानी और मीराबाई में काफी समानताएं हैं। ये दोनों ही खिलाड़ी पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर से नाता रखती हैं। इसके अलावा ये दोनों एक ही एकेडमी में प्रेक्टिस करती हैं।परिवार का बैकग्राउंड भी दोनों का लगभग एक जैसा है। दोनों की कई चीजें खूब मेल खाती हैं, इसलिए कई लोगों ने उनका नाम मीराबाई चानू 2.0 रख दिया है। दिलचस्प बात तो यह है कि ये नाम उनका तब रखा गया था जब मीराबाई ने ओलिंपिक में पदक भी नहीं जीता था।
बिंदियारानी देवी, चानू को देखते हुए ही बड़ी हुई हैं। जब मीराबाई चानू को बिंदियारानी के संघर्ष के बारे में पता चला था तो उन्होंने उनकी मदद भी की थी। मीराबाई चानू को पता चला था कि बिंदियारानी के पास अच्छे जूते नहीं हैं और फिर इस खिलाड़ी ने अपने जूते बिंदियारानी को उपहार में दिए थें।
बिंदियारानी ने पिछले साल कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा था, “मीरा दी का मेरी सफलता में बहुत योगदान रहा है। वह मेरी तकनीक, मेरी ट्रेनिंग को लेकर हमेशा मेरी हेल्प करने को तैयार रहती हैं। मैं जब कैम्प में नई थी, तब भी उन्होंने मेरा बहुत साथ दिया था। उनको पता था कि मेरे पास जूते खरीदने के पैसे नहीं हैं लेकिन फिर उन्होंने मुझे अपने जूते दे दिए। वह हमेशा से प्ररेणा रही हैं और जमीन से जुड़े रहने वाला व्यवहार के कारण ही मैं उनकी सबसे बड़ी प्रशंसक हूं।”