खेल

जूडो में भारत के लिए पदक दिलाने वाली पहली भारतीय महिला बनी सुशीला, अब भारत को हैं गोल्ड की उम्मीदें

नई दिल्ली: भारत की सुशीला देवी लिकमाबाम ने जुडो में 48 किलोग्राम भारवर्ग में फाइनल में अपनी जगह बना ली है। उन्होंने कम से कम एक मेडल पक्का कर लिया है। फाइनल में वह गोल्ड मेडल जीतना चाहेंगी। सुशीला कॉमनवेल्थ गेम्स में जूडो में भारत के लिए पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई है। उन्होंने 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए सिल्वर मेडल अपने नाम किया था।

कौन हैं सुशीला देवी ?

सुशीला देवी लिकमाबाम भारत की जूडो खिलाड़ी हैं। भारत की ओर से जूडो में हिस्सा लेने वाली ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 2020 में वह एकमात्र भारतीय महिला जूडो खिलाड़ी रहीं हैं। सुशीला लिकमाबाम का जन्म 1 फ़रवरी, 1995 को हुआ था। सुशीला देवी लिकमाबाम इंफाल के पूर्वी जिले में स्थित हिंगांग मयाई लीकाई की रहने वाली हैं।

भाई को देख खेला जुडो

सुशीला बचपन में अपने भाई सिलाक्षी के साथ जूडो अकेडमी जाया करती थी। दोनों सुबह साढ़े पांच बजे उठते और तैयार होकर छह बजे तक घर से निकल जाते थे। आधे घंटे के साइकिल सफर के बाद वह जूडो अकेडमी पहुंचते। कभी बारिश तो कभी कोहरा, दोनों के लिए सुबह का यह सफर मुश्किल होता था।

2009 में कोच से हुई थी मुलाकात

सुशीला साल 2009 में पहली बार अपने मौजूदा कोच और अर्जुन अवॉर्डी जीवन कुमार शर्मा से मिली थी, जिन्होंने उन्हें खेलना जारी रखने के लिए हमेशा प्रेरित किया है। वह उनका खर्च भी उठाते और स्पॉन्सर्स को सुशीला का समर्थन करने के लिए भी राजी करते थे। धीरे-धीरे इसका असर दिखने लगा और सुशीला पहले जूनियर और फिर सीनियर लेवल पर मेडल अपने नाम करने लगी। 2014 में वह ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने पहुंचीं और वहां सिल्वर मेडल जीता था।

संघर्ष भरा था सुशीला का जीवन

सुशीला को करियर के दौरान पैसों की कमी की वजह से बहुत कुछ सहना पड़ा। साल 2018 में वह पैर की चोट के कारण एशियन गेम्स का हिस्सा नहीं बन पाई थी। जिसके बाद स्पॉन्सर्स ने उनका साथ छोड़ दिया था। सुशीला ने साल 2016 में अपने लिए गाड़ी खरीदी थी जिसके कारण उनका टूर्नामेंट के लिए जाने का सफर आसान हो जाता था लेकिन 2018 में उन्होंने अपना ट्रेवल का खर्च उठाने के लिए अपनी गाड़ी बेच दी थी। सुशीला ने कर्ज भी लिया, उनके पिता के पास एक छोटा सा खेत है जहां वह अपने घर चलाने के लिए सब्जी उगाते हैं। वह जब भी किसी टूर्नामेंट में सफलता हासिल करके आती तो गांव के लोग खुशी जाहिर करते लेकिन कोई भी आर्थिक मदद करने में उनकी सहायता नहीं कर पाता था।

लॉकडाउन का भी सुशीला की जिंदगी पर काफी असर हुआ। पिछले लॉकडाउन में वह घर पर थीं। तब उनके कोच ने उन्हें एक मैट पहुंचाया था जिसपर वह प्रैक्टिस करती थीं। सुशीला ने एक साथी खिलाड़ी को अपने घर रहने को बुलाया और हर रोज उनके साथ अभ्यास करती थीं। जबकि इस साल लगे दूसरे लॉकडाउन में वह नई दिल्ली में थीं जहां वह साई केंद्र में रहकर प्रैक्टिस करती थीं।

 

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Ayushi Dhyani

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