Chinese Sponserhip In Sports: क्या खेलों में चीन स्पॉन्सरशिप का बहिष्कार करना होगा आसान, भारतीय खिलाड़ियों को मिलती है मोटी रकम

Chinese Sponserhip In Sports:भारतीय खेल जगत के लिए चीनी कम्पनियों की मोटी स्पॉन्सरशिप और खेलों के सामान के लिए चीन पर निर्भरता किसी से छिपी नहीं है. सवाल उठता है कि क्या ऐसी स्थिति में हम चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने की स्थिति में हैं. क्या मोटी स्पॉन्सरशिप राशि से सरकार को टैक्स के रूप में अच्छी खासी आमदनी नहीं होती. भारत के कई दिग्गज खिलीड़ी जैसे विराट कोहली, पीवी सिंधू, किदांबी श्रीकांत को चीना स्पॉन्सरशिप से मोटी रकम मिलती है.

Advertisement
Chinese Sponserhip In Sports: क्या खेलों में चीन स्पॉन्सरशिप का बहिष्कार करना होगा आसान, भारतीय खिलाड़ियों को मिलती है मोटी रकम

Aanchal Pandey

  • July 3, 2020 7:29 pm Asia/KolkataIST, Updated 4 years ago

Chinese Sponserhip In Sports: विराट कोहली चीन की स्मार्टफोन ब्रांड की कम्पनी आई क्वेस्ट ऑन एंड ऑन के ब्रैंड एम्बेसडर हैं जहां से उन्हें अच्छी खासी धनराशि मिलती है. पिछले ओलिम्पिक की सिल्वर मेडलिस्ट और वर्ल्ड चैम्पियन पीवी सिंधू को चीन की ली निंग कम्पनी से तकरीबन 50 करोड़ की राशि मिलती है. ये करार चार साल का है जिसमें उपकरणों के लिए पांच करोड़ की राशि अलग से है. बैडमिंटन में दुनिया के नम्बर वन रह चुके किदाम्बी श्रीकांत को इसी कम्पनी से 35 करोड़ की धनराशि मिलती है जबकि अन्य बैडमिंटन खिलाड़ी पी कश्यप को ली निंग कम्पनी से दो साल के आठ करोड़ और मनु अत्री और बी सुमित रेड्डी की डबल्स जोड़ी में प्रत्येक को चार करोड़ रुपये दो साल के मिलते हैं. इतना ही नहीं, भारतीय खेल जगत के लिए चीनी कम्पनियों की मोटी स्पॉन्सरशिप और खेलों के सामान के लिए चीन पर निर्भरता किसी से छिपी नहीं है.

सवाल उठता है कि क्या ऐसी स्थिति में हम चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने की स्थिति में हैं. क्या मोटी स्पॉन्सरशिप राशि से सरकार को टैक्स के रूप में अच्छी खासी आमदनी नहीं होती. क्या खेलों के उपकरण बनाने वाली कम्पनियां काफी हद तक चीन के कच्चे माल पर निर्भर नहीं हैं. सवाल यहां यह भी है कि चीन की कम्पनियों को छोड़कर क्या कोई भारतीय कम्पनी पीवी सिंधू से 50 करोड़ और किदाम्बी श्रीकांत से 35 करोड़ रुपये का करार करने का माद्दा रखती हैं. जैसा कि सर्वविदित है कि क्रिकेट का खेल चीन में अमूमन नहीं खेला जाता, इसके बावजूद वीवो नाम की चाइनीज़ कम्पनी आईपीएल की टाइटिल स्पॉन्सरशिप हासिल करती है और उसमें 480 करोड़ रुपये का प्रति वर्ष निवेश करती है जबकि इसकी तुलना में पेप्सी और डीएलएफ ने पिछले वर्षों में आईपीएल की टाइटिल स्पॉन्सरशिप के लिए इससे आधे से भी कम धनराशि में बीसीसीआई से करार किया.

सच तो यह है कि स्वयं भारत सरकार चीन की कम्पनियों पर इस कदर निर्भर है कि लद्दाख की गलवान सीमा पर शहीद हुए 40 जवानों को सरकार ने श्रद्धांजलि चीन की कम्पनी टिकटॉक पर ही दी. यह तथ्य सरकार की दूरदर्शिता को ही दिखाता है. चाइनीज़ कम्पनी वीवो आईपीएल और प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) की टाइटिल स्पॉन्सर है. आईपीएल को वीवो से पांच साल के 2199 करोड़ रुपये जबकि पीकेएल को 275 से 300 करीड़ की धनराशि मिलती है. इसी तरह ऑन लाइन टिटोरियल की फर्म बाइजू के साथ भी बीसीसीआई का मोटा करार है. बाइजू को चाइनीज़ कम्पनी टेनसेंट से फंडिंग होती है.

इसी तरह बीसीसीआई का ऑनलाइन फैंटेसी लीग प्लेटफॉर्म ड्रीम 11 में भी टेनसेंट का ही पैसा लगा है। भारत में होने वाले अंतरराष्ट्रीय मैचों की टाइटल स्पॉन्सरशिप पेटीएम के पास है जिससे बीसीसीआई को 326.8 करोड़ रुपये की आमदनी होती है. ये कम्पनी प्रति मैच 3.8 करोड़ रुपये खर्च करती है. इस कम्पनी में चाइनीज़ कम्पनी अलीबाबा की 37.15 फीसदी भागीदारी है। इस तरह स्वीगी आईपीएल का एसोसिएट स्पॉन्सर है जिसे चाइनीज़ कम्पनी टेनसेंट फाइनेंस करती है. स्वीगी में उसकी भागीदारी 5.27 फीसदी है.

चीन के जिम्नास्ट ली निंग ने 1984 के ओलिम्पिक में तीन गोल्ड सहित कुल छह पदक हासिल किये थे. वहीं ली निंग दुनिया की स्पोर्ट्सवेयर की एक बड़ी कम्पनी है जो पीवी सिंधू और किदाम्बी श्रीकांत सहित न सिर्फ देश के कई बैडमिंटन खिलाड़ियों पर मोटा खर्च करती है बल्कि भारतीय ओलिम्पिक संघ के साथ भी उसका करार है जिसके तहत वह ओलिम्पिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों और अधिकारियों की किट और जर्सी पर खर्च करती है. इतना ही नहीं ली निंग कम्पनी का करार वियतनाम की फुटबॉल टीम, ताजिकिस्तान की टेनिस टीम इंडोनेशिया और ताजिकिस्तान की फुटबॉल टीमों और इंडोनेशिया ओलिम्पिक संघ के साथ है.

कुछ साल पहले तक भारतीय खिलाड़ियों के आधे से ज़्यादा उपकरण चीन से आते हैं. पिछले वर्षों में अमेरिका और जर्मनी पर भारत की निर्भरता में बहुत कमी आई है. भारत भी खेलों का सामान बनाने में अग्रणी देश रहा है जहां 2017-18 के मुक़ाबले 2018-19 में भारत ने तकरीबन आठ फीसदी ज़्यादा निर्यात किया वहीं भारत का इसी अवधि में आयात भी 33.26 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया.

आज शटलकॉक से लेकर टेबल टेनिस बॉल, टेनिस और बैडमिंटन रैकेट, बॉक्सिंग हैड गार्ड्स और जिम के उपकरण सबसे ज़्यादा चीन से आते हैं. टेबल टेनिस बॉल चीन की हैप्पीनेस कम्पनी बनाती है. यहां तक भारत में बनने वाले खेल उत्पादों का कच्चा माल चीन से ही आयात होता है. यह भी एक सच है कि भारत से जो फुटबॉल, बास्केटबॉल और वॉलीबाल का निर्यात अमेरिका और यूरोपीय देशों में होता है, उसका कच्चा माल हमें चीन से ही मंगाना पड़ता है. वहीं भारतीय कम्पनियां क्रिकेट के बल्ले, गेंद, हॉकी स्टिक और हॉकी की गेंदें, बॉक्सिंग में इस्तेमाल होने वाला सामान काफी संख्या में बनाती हैं.

मौजूदा स्थिति में चीनी सामान का तुरंत प्रभाव से बहिष्कार करने का हमें नुकसान ज़्यादा होगा. चीनी उत्पाद काफी संख्या में बनने की वजह से भारतीय उत्पादों से सस्ते होते हैं जिससे उनकी मांग अधिक रहती है. अगर भारतीय भावनाओं का आदर करना है तो सरकार के लोकल के लिए वोकल होने के फ़ॉर्मूले का सम्मान होना चाहिए. इसके लिए चीनी कम्पनियों का पूरी तरह से बहिष्कार व्यावहारिक कदम नहीं होगा. आत्मनिर्भर होने की प्रक्रिया को धीरे-धीरे शुरू किया जा सकता है.

Virat Kohli Coach Rajkumar Sharma Exclusive: राजकुमार शर्मा बोले- विराट कोहली की कप्तानी में सौरभ जैसी आक्रमकता, आस्ट्रेलियाई दौरे पर दिखेगा एग्रेसिव खेल

Virat Kohli Income: विराट की कमाई पाकिस्तान की पूरी टीम के करीब-करीब बराबर, जानें पूरी इनकम

Tags

Advertisement