नई दिल्ली। बर्मिंघम में आयोजित हो रहे 22वें राष्ट्रमंडल खेल में भारत को अपना पहला स्वर्ण पदक मिल गया है। भारतीय स्टार वेट लिफ्टर मीराबाई चानू ने महिलाओं के 49 किलो वर्ग कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करके ये गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। गोल्ड जीतने के लिए उनको कुल 201 किलो का वजन उठाना पड़ा। […]
नई दिल्ली। बर्मिंघम में आयोजित हो रहे 22वें राष्ट्रमंडल खेल में भारत को अपना पहला स्वर्ण पदक मिल गया है। भारतीय स्टार वेट लिफ्टर मीराबाई चानू ने महिलाओं के 49 किलो वर्ग कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करके ये गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। गोल्ड जीतने के लिए उनको कुल 201 किलो का वजन उठाना पड़ा। मीराबाई चानू ने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड मेडल अपने नाम करने में कामयाब रही थी। मीराबाई चानू का जीवन लगातार संघर्षो से भरा रहा है।
मीराबाई चानू का कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे बड़े टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतने तक का सफर इतना आसान नहीं था। बचपन में उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वो अपने भाई बहनों के साथ जंगलों से लकड़ियों के गट्ठर लाती थीं। इसी दौरान मीराबाई में एक असामान्य प्रतिभा जाग गई और मात्र 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने लोकल वेटलिफ्टिंग टूर्नामेंट में अपना पहला पदक जीता।
मीराबाई के पास पैसा नहीं होने के कारण वो ट्रक ड्राइवर से लिफ्ट लेकर ट्रेनिंग सेंटर जाती थीं। मीराबाई इस संघर्ष से कभी निराश नहीं हुईं। भारत के लिए कई मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलिंपिक 2020 में 49 किलोग्राम भार वर्ग प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता था। और देश के 21 वर्षों के इंतजार को खत्म कर दिया। उनसे पूर्व कर्णम मल्लेश्वरी ने 21 वर्ष पहले ब्रॉन्ज जीतकर भारत को यह गौरव प्रदान किया था।
मीराबाई चानू का बचपन से ही खेलों के प्रति ज्यादा रुचि रखती थी। वह टीवी पर फिल्में और सीरियल की जगह स्पोर्ट्स को देखना ज्यादा पसंद करती थीं। भगवान ने उनके शरीर में ताकत भी दी है। वह 5-6 साल की में ही पानी से भरी बाल्टी लेकर पहाड़ों पर चढ़ जाती थीं। जब चानू लगभग 10 साल की थी तब अपनी बड़ी बहनों के साथ मिलकर खाना बनाने के लिए जंगल से लकड़ी के भारी गट्ठर उठा कर लाती थी।