नई दिल्ली: इस समय खिलाड़ियों के डोपिंग के मामलों में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है. इसी बात के मद्देनज़र वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) को निर्देश जारी किए हैं.
निर्देश के तहत वह इस दिशा में युद्ध स्तर पर ध्यान दे और एंटी डोपिंग कोड 2015 का हवाला देते हुए उसने पॉपुलर स्पोर्ट्स को अपने दायरे में लाने की बात कही है लेकिन बीसीसीआई ने अपने हाई प्रोफाइल खिलाड़ियों के रुख को देखते हुए नाडा से दूरी बना ली है. उसका तर्क है कि उसका एंटी डोपिंग अभियान पहले से चल रहा है और इस काम का ज़िम्मा उसने इंटरनैशनल डोप टेस्टिंग एजेंसी (आईडीआईएम) को सौंपा हुआ है.
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार अब नाडा ने इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनी प्रशासकों की समिति (सीओए) के अध्यक्ष विनोद राय से की है. अपनी शिकायत में नाडा ने लिखा है कि अगर इंटरनैशनल क्रिकेट काउंसिल का पिछले 11 वर्षों से वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) से करार है तो बीसीसीआई को नाडा से क्या परेशानी है.
सैम्पल
बीसीसीआई के सूत्रों का कहना है कि आईडीआईएम इस दिशा में सक्रिय है. पिछले दिनों विजय हज़ारे ट्रॉफी वन डे क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान खिलाड़ियों के सैम्पल लिए गए थे. यहां एक सच यह भी है कि बीसीसीआई जैसा चाहता है, वैसा आईडीआईएम करता है.
अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप
उसके खिलाड़ी हाई प्रोफाइल हैं, जो नाडा के वेयरअबाउट क्लॉज़ से लेकर तमाम मसलों पर इसे उनके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप मानते हैं, जबकि आईडीआईएम उसी तरीके से काम करता है, जैसा बीसीसीआई चाहता है. यहां गौरतलब है कि डॉ. वेस पेस बोर्ड के एंटी डोपिंग यूनिट के प्रमुख हैं लेकिन वह इस दिशा में क्या कर रहे हैं, यह हमेशा रहस्य का विषय बना रहता है क्योंकि उन्हें इस बारे में मीडिया से बात करने की मनाही है.
बोर्ड का दावा है कि वह अपने एंटी डोपिंग कार्यक्रम पर सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक खर्च करता है और एक साल में 200 के आसपास खिलाड़ियों के सैम्पल लेता है. वहीं नाडा के सूत्रों का कहना है कि अलग-अलग आयु वर्गों को देखते हुए क्रिकेट टूर्नामेंटों की संख्या को देखते हुए ये सैम्पल काफी नहीं हैं. उसने अपने पत्र में 2017-18 के घरेलू सीज़न से खिलाड़ियों के सैम्पल लेने की इच्छा ज़ाहिर की है, जो बोर्ड को मंजूर नहीं है.
बीसीसीआई सूत्रों का कहना है कि जब क्रिकेट ओलिम्पिक स्पोर्ट्स की श्रेणी में नहीं आता तो वह इंटरनैशनल ओलिम्पिक कमिटी के किसी भी फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. ऐसी स्थिति में वह डोपिंग के लिए आईओसी के वाडा या नाडा के प्रस्ताव पर क्यों ध्यान दें.
नियमित रूप से डोप टेस्ट
वहीं नाडा के अधिकारियों का कहना है कि वाडा के निर्देश पर ही वह देश के सबसे पॉपुलर स्पोर्ट्स को अपने दायरे में लाने में जुटे हुए हैं. वहीं बीसीसीआई का कहना है कि वह घरेलू स्तर पर 2013 से नियमित रूप से डोप टेस्ट करा रहा है. इसी वर्ष तेज़ गेंदबाज़ प्रदीप सांगवान को डोपिंग के लिए प्रतिबंधित किया जा चुका है.
सूत्रों के अनुसार अभी तक विनोद राय की ओर से नाडा को इसका जवाब नहीं आया है. वैसे भी पिछले दिनों रामचंद्र गुहा ने यह कहकर इस समिति से इस्तीफा दे दिया था कि प्रशासकों की कमिटी किसी भी मामले में क्रिकेट अधिकारियों के खिलाफ सख्ती से कदम नहीं उठा रही.
यहां तक कि लोढा कमिटी की सिफारिशों को लागू करने में भी इस कमिटी का रवैया ढुलमुल रहा है. बहरहाल गेंद सीओए के अध्यक्ष विनोद राय के कोर्ट में है. वह इस मसले को हवा में उड़ाते हैं या नाडा की गम्भीर चिंता का कोई हल करते हैं, देखना दिलचस्प होगा.