नई दिल्ली : इंडियन प्रीमियर लीग ने 2008 में अपने पहले ही साल में 662 करोड़ की कमाई की थी. पिछले साल अपने आयोजन के नौवें साल में यह आंकड़ा 2500 करोड़ को पार कर गया.
यानी लीग ने इन नौ वर्षों में अपनी कमाई में तकरीबन चार गुना की वृद्धि की है. इसी तरह ब्रांड की संख्या के मामले में भी पहले साल से लेकर अब तक चौगनी वृद्धि हुई है.
सच तो यह है कि आईपीएल का आयोजन बीसीसीआई के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी से कम नहीं रहा. लेकिन आपको जानकर यह भी हैरानी होगी कि बीसीसीआई शुरू में आईपीएल-20 को शुरू करने में हिचकिचा रहा था.
यहां तक कि बोर्ड के सदस्यों ने भी इसके विरोध में कई तर्क दिए थे लेकिन आज बोर्ड को अपनी कुल कमाई में से 69 फीसदी कमाई आईपीएल से होती है. आईपीएल को सोनी टीवी पर जितना देखा जाता है, उतना किसी लीग को नहीं देखा जाता.
इसके आयोजन के पहले ही साल में मैच के दौरान दस सेकंड के लिए ढाई से साढ़े तीन लाख रुपए विज्ञापन चुकाने पड़े थे. विज्ञापनदाताओं को यकीन हो गया था कि आईपीएल की वजह से उनके प्रोडक्ट की आम आदमी तक पहुंच रहे हैं.
इसके बाद उस दौरान विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गई. आज आलम यह है कि दस सेकंड के लिए विज्ञापन दरें 5.65 लाख से पौने छह लाख तक पहुंच गई हैं.
यही वजह है कि लीग के मीडिया राइट्स में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है. जो मीडिया राइट्स आईपीएल के पहले सीज़न में 350 करोड़ रुपये में बिके थे, वह 2016 में 1100 करोड़ में बिके.
22 ब्रांड आए झोली में
इसी तरह आईपीएल के पहले सीज़न में कुल 22 ब्रांड आयोजन से जुड़े थे. इनमें से ज़्यादातर ब्रांड इन दस सालों में आयोजन से जुड़े रहे और इस साल यह संख्या 80 तक पहुंच गई है.
विज्ञापनों से आय का राजस्व भी इन सालों में दोगुना हो गया. 2008 में जहां विज्ञापनों से 600 करोड़ रुपये की कमाई हुई वहीं 2016 में पिछले आयोजन में यह कमाई 1200 करोड़ तक पहुंच गई.
ढाई गुना बढ़ा राजस्व
बीसीसीआई को हर साल टीवी प्रसारण से लेकर तमाम दो देशों की सीरीज और टूर्नामेंटो से अच्छी खासी कमाई होती थी. लेकिन आईपीएल ने बैठे-बैठाए उसकी कमाई में कई गुना इज़ाफा कर दिया.
इसका अंदाज़ा आप 2008 से 2016 तक की अवधि में बढ़ी उसकी आमदनी से लगा सकते हैं. 2008 में बीसीसीआई का राजस्व कुल 1373.91 करोड़ रुपए थे जो 2016 में 33576.17 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.