नई दिल्ली : मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह जिन दिनों बीएसएफ टीम की ओर से फुटबॉल खेला करते थे तो उनकी टीम के कप्तान और बाद में कोच की ज़िम्मेदारी निभाने वाले सुखपाल सिंह बिष्ट ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी टीम का एक साथी कभी एक राज्य के सीएम की कुर्सी पर बैठेगा लेकिन उन्हें इस बात का विश्वास ज़रूर था कि एक न एक दिन वह एक मुकाम पर ज़रूर पहुंचेंगे.
जुझारूपन काम आया
`इन खबर` से एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में सुखपाल सिंह ने कहा कि मैंने अपने पूरे करियर में ऐसे जुझारू खिलाड़ी बहुत कम देखे हैं. उनका यही जुझारूपन फुटबॉल से ज़्यादा उनके राजनीतिक जीवन में काम आया. उन्होंने कहा कि वह एकदम अलग तरह के खिलाड़ी थे. वह गम्भीर नेचर के और बेहद अनुशासित थे. अपने कोच की हर बात का वह सम्मान करते थे.
उन्होंने कहा कि उन्होंने कोच बनने के बाद उन्हें जो भी निर्देश दिया, उसका उन्होंने बखूबी पालन किया और उन्होंने वही बात उन्हें दोबारा कहने का मौका नहीं दिया. इतना ही नहीं, वह इस मामले में काफी संवेदनशील थे. इसीलिए कोच की हर हिदायत पर अमल करना उनकी प्राथमिकता होती थी. उन्हें कोई भी ग़लत बात बर्दाश्त नहीं थी लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि वह बुरी लगने वाली बात भी चेहरे पर ज़ाहिर नहीं होने देते थे.
1981 में सर्वश्रेष्ठ फॉर्म
सुखपाल सिंह बिष्ट को इस बात का गर्व है कि 1981 और 1982 के सीज़न में जब बीएसएफ ने देश के कई बड़े खिताब जीते तो वह उस टीम के कप्तान थे और बीरेन टीम के सबसे भरोसे के खिलाड़ियों में से एक थे. उन्होंने कहा कि इन दो वर्षों में हमारी टीम ने डूरंड कप, डीसीएम कप, फेडरेशन कप, पुलिस गेम्स और गोरखा गोल्ड कप जैसे बड़े खिताब अपने नाम किए थे.
इनमें फेडरेशन कप को छोड़कर बाकी हर आयोजन में बीरेन टीम के सदस्य थे और उनका प्रदर्शन भी काफी अच्छा रहा था. वह कभी किसी के उकसाने में नहीं आते थे. यह खूबी उनके जीवन में भी काम आई.
सही समय पर सही फैसला
सुखपाल बिष्ट ने बताया कि बीरेन अपनी खुराक को लेकर भी काफी सजग रहते थे. फलों में केला उन्हें सबसे पसंद था. मैं उनके साथ रामा मंडी, जालंधर केंट में भी रहा और दिल्ली में नजफगढ़ के छावला कैम्प में भी रहे. उन्हें याद है कि टीम के एक अन्य हाफ बैक नौगीन सिंह से उनकी अच्छी दोस्ती थी. उन्होंने कहा कि इम्फाल में 2002 मे पुलिस खेलों के दौरान बीरेन ने अपने पुराने साथियों को पार्टी दी थी और पुराने दिनों को खूब याद किया था.
तब तक वह राजनीति में प्रवेश कर चुके थे. अगर वह फुटबॉल खेलना जारी रखते तो वह ज़्यादा से ज़्यादा आज डीएसपी होते या उन्हें एशियाई खेलों में भाग लेने का मौका मिल जाता लेकिन सही समय पर सही फैसला लेने की उनकी प्रवृति ने उन्हें अपने राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया. वह कभी मैदान पर पीछे खेलते थे, आज राज्य ने उन्हें सबसे आगे रहने की ज़िम्मेदारी दी है.
दिल्ली आने का इंतज़ार
सुखपाल को विश्वास है कि मुख्यमंत्री बनने के बावजूद वह उनसे आज भी उसी तरह मिलेंगे जैसे 2002 में मिले थे. उन्हें उनके उस कार्यक्रम का इंतज़ार है जब वह दिल्ली के मणिपुर हाउस में आएंगे. वह उनसे मिलने ज़रूर जाएंगे क्योंकि उन्हें इस बात का गर्व है कि फुटबॉल का साथ-साथ अभ्यास करते-करते वह एक मुकाम पर पहुंच गए हैं. उन्हें हम इस क़ामयाबी के लिए बधाई देते हैं.