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खिलाड़ियों के लिए जी का जंजाल बना बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का ये फैसला

नई दिल्ली : खिलाड़ियों की ओवर-एज की समस्या भारतीय खेलों की एक गम्भीर समस्या है. खिलाड़ी उम्र को लेकर गलत प्रमाण देकर कैडेट और जूनियर स्तर पर तो अच्छा प्रदर्शन कर लेते हैं लेकिन सीनियर वर्ग में वास्तविक आयु वर्ग के खिलाड़ियों के बीच वे एक्सपोज हो जाते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने एक ऐसा अहम फैसला किया है जो ऐसे खिलाड़ियों के लिए जी का जंजाल बन गया है.
बर्थ सर्टिफिकेट अनिवार्य
बीएआई ने अपने एक बड़े फैसले में खिलाड़ियों को एज ग्रुप टूर्नामेंटों के लिए बर्थ सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया है. यह सर्टिफिकेट भी खिलाड़ी की जन्म की तारीख के एक वर्ष के अंदर बना होना चाहिए. इसे दिखाकर पंजीकृत खिलाड़ियों को आईडी नम्बर जारी किया जाएगा. बीएआई ने राज्य और रैंकिंग टूर्नामेंट के लिए इस आईडी नम्बर को अनिवार्य कर दिया है.
वहीं काफी संख्या में खिलाड़ियों के पास अपने जन्म के एक वर्ष के अंदर बना सर्टिफिकेट न होने से उनके इन टूर्नामेंटों में भाग लेने की समस्या खड़ी हो गई है. यानी एक समस्या से निजात मिला नहीं और दूसरी समस्या खड़ी हो गई. यह कदम खासकर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में खिलाड़ियों की ओवरएज की समस्या के मद्देनज़र उठाया गया है. इन राज्यों के खिलाफ शिकायत यह है कि ऐज ग्रुप में टॉप टेन रैंकिंग के खिलाड़ियों में 40 फीसदी खिलाड़ी उम्र से ज़्यादा पाए गए थे.
पहल का स्वागत
दिल्ली बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव एस. पी. सिंह ने कहा कि इस समस्या से ज़्यादातर खेल प्रभावित हैं. किसी भी टूर्नामेंट में खिलाड़ियों को आयु प्रमाण पत्र साथ लाने के लिए कहा जाता है. इससे उम्र को लेकर विरोध दर्ज करने की स्थिति में समय की बर्बादी से बचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि अप्रैल में दिल्ली में एक रैंकिंग टूर्नामेंट है. वहां यह नियम काफी उपयोगी साबित हो सकता है. उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की कि इस नियम से खिलाड़ियों की एंट्री की संख्या में कोई कमी नहीं आएगी.
एकेडमियों की गलत सलाह  
दरअसल, जन्म एवं मृत्यु अधिनियम 1969 के अनुसार किसी भी व्यक्ति के जन्म और मृत्यु को 30 दिन के अंदर पंजीकृत करना ज़रूरी बताया गया है. बैडमिंटन में नए नियम को बनाते हुए इसी नियम को आधार बनाया गया है. इस खबर की पड़ताल के बाद एक बात सामने आई कि स्कूलों में खुली एकेडमियों में आम तौर पर खिलाड़ियों को एक अतिरिक्त लाभ देते हुए नया बर्थ सर्टिफिकेट बनाने की सलाह पेरेंट्स को दी गई.
इससे खिलाड़ियों को कम एज ग्रुप में खिलाकर लाभ दिया गया और यहीं से गलत परम्परा की शुरुआत हो गई. आलम यह था कि अन्य खेलों की तरह बैडमिंटन में भी वास्तविक आयु के खिलाड़ी पिछड़ते हुए दिखाई दिए. ओवरऐज खिलाड़ियों की समस्या का हल निकालने के लिए भारतीय शतरंज संघ ने इस दिशा में पहल की थी और बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया इस बारे में सख्त कदम उठाने वाला दूसरा खेल बना.
आधे हुए ऐज ग्रुप टूर्नामेंट
इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए ही बीएआई ने इस साल अप्रैल से ऐज ग्रुप टूर्नामेंटों की संख्या को आधा कर दिया है. अब राष्ट्रीय स्तर पर सबजूनियर वर्ग में अंडर 13 और अंडर 15 और जूनियर वर्ग में अंडर 17 और अंडर 19 के मुक़ाबले होंगे. हालांकि राष्ट्रीय कोच और पूर्व खिलाड़ी गोपीचंद ने इस फैसले को सही ठहराया है. उन्होंने सीनियर स्तर पर टूर्नामेंटों की संख्या बढ़ाने पर ज़ोर दिया.
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