नई दिल्ली: कभी सुनील गावसकर ने अपनी किताब `आइडल्स` में लिखा था कि बाएं हाथ के दो महान स्पिनर बिशन सिंह बेदी और राजेंद्र गोयल जब अपने करियर के शवाब पर थे तो उस समय वह इन दोनों में बिशन बेदी को खेलना ही पसंद करते. यह टिप्पणी राजेंद्र गोयल की महानता को दिखाती है जहां गावसकर राजेंद्र गोयल को बेदी से भी ज़्यादा खतरनाक गेंदबाज़ मानते थे. इन दोनों को बीसीसीआई के सीके नायडू लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के लिए चुना गया है.
गावसकर ने यह भी लिखा है कि खासकर राजेंद्र गोयल की फ्लैटर किस्म की गेंदों के सामने बाहर निकलकर खेलना खतरे से खाली नहीं था. इसी दौर के एक अन्य बाएं हाथ के स्पिनर पद्माकर शिवालकर के लिए भी गावसकर के मन में बहुत सम्मान था. उन्होंने दोनों के बारे में यहां तक लिखा है कि अगर दोनों किसी अन्य देश में होते तो निश्चय ही कोई भी उन्हें अपनी अंतिम 11 की टीम में जगह देता.
टेस्ट टीम में नहीं खेले
जी हां, राजेंद्र गोयल और पद्माकर शिवालकर कभी टेस्ट टीम में नहीं खेल पाए. राजेंद्र के नाम रणजी ट्रॉफी में सबसे ज़्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज है जबकि शिवालकर तो करीब-करीब 50 की उम्र तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते रहे.
उस समय राष्ट्रीय चयनकर्ताओं का भरोसा लम्बे समय तक बिशन सिंह बेदी की गेंदबाज़ी पर बना रहा. हालांकि टेस्ट टीम में प्रसन्ना और वेंकटराघवन के रूप में दो ऑफ स्पिनर एक साथ खेले लेकिन गोयल और शिवालकर ने अपनी पूरी ज़िंदगी मैदान के बाहर से बेदी को गेंदबाज़ी करते देखने में बिता दी.
सबसे बड़ी बाधा
बिशन बेदी ही नहीं, इनसे पहले बापू नादकर्णी और रूसी सुरती भी इन दोनों के भारतीय टीम में खेलने को लेकर सबसे बड़ी बाधा साबित हुए. बेशक दोनों दोनों बाएं हाथ के विशेषज्ञ स्पिनर नहीं थे लेकिन इनकी ऑलराउंड खूबियों के मद्देनज़र राजेंद्र गोयल और शिवालकर को मौका नहीं मिल सका. शिवालकर को तो मुम्बई टीम में भी काफी देरी में मौका मिला. यहां तक कि एकनाथ सोल्कर जो बाएं हाथ से तेज़ गेंदबाज़ी किया करते थे, वह भी अपनी फील्डिंग की अतिरिक्त खूबी से टीम में बने रहे जिससे शिवालकर को और इंतज़ार करना पड़ा.
बल्लेबाज़ की कमज़ोरी
राजेंद्र गोयल गेंद को बहुत कम फ्लाइट करते थे और उनमे किसी भी विकेट पर गेंद को घुमाने की काबिलियत थी. ऊपर से उनमें स्टेमिना इतना ज़बर्दस्त था कि उन्हें एक छोर से लम्बे स्पेल में गेंदबाज़ी दी जाती थी. वहीं शिवालकर उनके मुक़ाबले गेंद को ज़्यादा फ्लाइट करते थे. वह किसी भी बल्लेबाज़ की कमज़ोरी को वह बखूबी पढ़ लेते थे और उसके हिसाब से अपनी गेंदबाज़ी का तानाबाना बुना करते थे.
विनोद काम्बली का इंटरव्यू
शिवालकर से मेरी जीवन में एक ही मुलाक़ात है. 29 साल पहले शिवाजी पार्क जिमखाना में जब उन्हें पता चला कि मैं सचिन के साथ 664 रन की स्कूल क्रिकेट की पार्टनरशिप करने वाले विनोद काम्बली का इंटरव्यू लेने आया हूं तो उन्होंने मुझे यह कहकर डांटते हुए कहा था कि भगवान के लिए उसे इतना मत चढ़ाओ. उसे अभी और स्कोर करने दो. मुझे न जाने क्यों, उनकी यह बात बुरी नहीं लगी बल्कि मेरे मन में उनके लिए एक क्रिकेट साधक की छवि बन गई.
वहीं राजेंद्र गोयल सही मायने में यारों के यार हैं. उनसे जब भी कभी टीवी चैनल के लिए फोनो का आग्रह किया गया, उन्होंने कभी निराश नहीं किया. इन दोनों को बीसीसीआई के सीके नायडू लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के लिए चुने जाने पर इन खबर की टीम की ओर से बहुत-बहुत बधाई.