नई दिल्ली: आज हम सभी के चहेते बल्लेबाज युवराज सिंह का जन्मदिन है. आज ही के दिन 1981 में युवराज ने चंडीगढ़ में जन्म लिया था.
आज हम जिस सेलिब्रिटी बन चुके युवराज को जानते हैं उस से अलग हट कर अगर हम युवराज को देखने तो उन्होंने अपने जीवन में कई मौकों पर जंग लड़ी है और हीरों की तरह जीते है. इसका अंदाजा आप इसी एक उदाहरण से लगा लें कि जब युवराज अपने करियर के सबसे अच्छे दौर में थे तो उन्हें कैंसर हो गया. बावजूद इसके उन्होंने ना सिर्फ कैंसर से लड़ाई की बल्कि मैदान में भी वापस लौटे.
बचपन में था स्केटिंग का शौंक
आज जो शख्स क्रिकेट का नाम आते ही सबसे पहले ज़हन में आता है उसका पसंदीदा खेल क्रिकेट नहीं बल्कि स्केटिंग था. बचपन में युवराज दिन में 8 से 10 घंटे स्केटिंग करते थे. नवजोत सिंह सिद्धू कई बार उन्हें इसकी वजह से लड़कों वाला खेल खेलने की सलाह भी दे चुके थे. युवराज सिंह के पिता योगराज भी चाहते थे कि युवराज एक क्रिकेटर बने.
बचपन में एक दफा स्केटिंग में मैडल जीत कर जब अपने पिता को युवराज ने दिखाए थे तो उन्होंने उन्हें क्रिकेट खेलने को कहा और साथ ही स्केटिंग करने पर टांगें तोड़ देने की धमकी भी दी थी.
सचिन रहे आदर्श
क्रिकेट की दुनिया में युवराज के लिए सचिन एक आदर्श रहे. सचिन ने 16 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया था. उस समय युवराज 8 साल के थे. युवराज बचपन में तेज गेंदबाज बनना चाहते थे लेकिन फिटनेट के कारण उन्होंने बल्लेबाजी से शुरुआत की.
तेज़ गेंदबाजी के शौंक के बावजूद युवराज शुरुआत में तेज गेंदबाजों से डरते थे. अक्सर वह तेज़ गेंदबाजों के सामने हार मान कर आउट हो जाते थे लेकिन इस महान खिलाड़ी ने अपने इस डर पर भी काबू पाया और 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप के दौरान इंग्लैंड के तेज गेंदबाज स्टुअर्ट बोर्ड के एक ओवर में छह छक्के लगाकर इसका प्रदर्शन भी किया.
बचपन में फिल्मों में आ चुके हैं युवराज
बचपन में युवराज को फिल्मों में काम करने का भी मौका मिला. उन्होंने दो पंजाबी फिल्मों में भी काम किया. इनमें वह एक चाइल्ड एक्टर के तौर पर नज़र आये. इनमें से एक फिल्म में वह रेस लगाते दिखाई दिए. जिसमें वह एक अच्छे दोस्त की भूमिका में नज़र आये.
ऐसे आना हुआ इंडियन क्रिकेट टीम में
साल 2000 में केन्या में खेले जा रहे आईसीसी नॉक आउट टूर्नामेंट के लिए सौरव गांगुली की कप्तानी में युवराज सिंह का चयन हुआ था. इस टीम में उनके आदर्श सचिन भी थे. हालांकि करियर के इस पहले मैच में उन्हें बल्लेबाजी का मौका नहीं मिल पाया था.
7 अक्टूबर 2000 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में युवराज सिंह ने शानदार 84 रन की पारी खेली थी और उन्हें ‘मैन ऑफ़ द मैच का अवार्ड’ भी मिला था. एकदिवसीय मैचों में युवराज सिंह ने अपना पहला शतक 2003 में बांग्लादेश के खिलाफ लगाया था. 2003 में वह टेस्ट टीम में जगह बनाने में कामियाब रहे. टेस्ट में युवराज की शुरुआत अच्छी नहीं रही थी. ज़ीलैंड के खिलाफ अपने करियर के पहले मैच में युवराज सिंह कुल मिलाकर 25 रन बना पाए थे लेकिन अपने करियर के तीसरे मैच में पाकिस्तान के खिलाफ शतक ठोक कर उन्होंने हिसाब बराबर भी कर लिया था.
जब शुरू हुई कैंसर से जंग:
2011 के वर्ल्ड कप के बाद युवराज को पता चला कि उन्हें कैंसर है. इलाज के लिए उन्हें अमेरिका जाना पड़ा. कैसर के साथ जंग पर लिखी अपनी किताब में उन्होंने बताया है कि उन्हें लगा था कि अब वह दोबारा कभी क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे. उस समय वह सिर्फ अपनी जान बचाना चाहते थे.
उस समय उनके आदर्श सचिन और कुंबले जैसे खिलाड़ी उनसे मिलने जाते थे और उनकी हिम्मत बढ़ाते थे. युवराज का क्रेब ढाई महीने तक कैंसर का इलाज चला. ठीक होने के बाद युवराज भारत लौट और उसके बाद टीम में वापसी के लिए संघर्ष किया.
टीम में वापसी:
टीम में वापसी के लिए युवराज को काफी संघर्ष करना पड़ा. वापस आने के बाद वह रणजी ट्रॉफी तक में फ्लॉप साबित हो रहे थे. लेकिन युवराज भी हार कहां मानने वालों में से थे. काफी मेहनत के बाद 11 सितंबर 2012 को न्यूज़ीलैंड के खिलाफ टी-20 मैच में उन्हें जगह मिली. युवराज ने अपना आखरी मैच 5 दिसंबर 2012 को इंग्लैंड के खिलाफ खेला था. आखरी एकदिवसीय मैच युवराज ने 11 दिसंबर 2013 को साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेला था.