लुधियाना. लुधियाना के एक छोटे से गांव में हर बच्चा नशे की चपेट में ऐसे आ रहा था कि उनको वापस नशे की लत से निकाल पाना बेहद मुश्किल हो गया था. लेकिन यहां खुली एक हॉकी एकेडमी ने गांव के बच्चों का ध्यान खेल की ओर खींचा और नशे की लत से छुटकारा दिलाने में मदद की. इस गांव का नाम है जरखर.
एकेडमी को शुरू करने वाले जगरूप जरखर के मुताबिक उन्होंने 1998 वर्ल्डकप में भारतीय हॉकी टीम को आंखों के सामने हारते हुए देखा था. इसके हार का सदमा उन्हें ऐसा लगा कि बाद में उन्होंने अपने गांव में एकेडमी खोलने की ठान ली. पिछले साल पंजाब अंडर-19 की टीम ने आधे से ज्यादा खेलों मे सिल्वर और गोल्ड पदक हासिल किए थे. इसमें सभी बच्चे जरखर एकेडमी के ही थे.
20 की लगी सरकारी नौकरी
जगरूप ने बताया कि वे बिना किसी सरकारी मदद के इस एकेडमी को खोलना चाहते थे. शुरुआत में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इस दौरान उनके कुछ एनआरआई दोस्तों ने उनकी आर्थिक तौर पर मदद भी की. इसके बाद जरखर हॉकी एकेडमी ने गांव के बच्चों का ध्यान खेल की तरफ इस कदर खींचा की नशे की लत से एकदम छुटकारा मिला. इसके अलावा जरखर हॉकी अकादमी के कुल 69 बच्चे राष्ट्रीय खेलों में भाग ले चुके हैं और 20 बच्चों की स्पोर्ट्स कोटे से सरकारी नौकरी भी लग चुकी है.
एस्ट्रो टर्फ मैदान
देश की राजधानी दिल्ली में किसी भी एकेडमी में हॉकी खेलने के लिये एस्ट्रो टर्फ नहीं है लेकिन जरखर हॉकी एकेडमी में एस्ट्रो टर्फ मैदान है. इससे खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का माहौल मिलता है. इसके साथ ही अकादमी मे सिक्स साइड फ्लड लाइट्स भी हैं. जो बहुत कम जगह ही देखने को मिलते हैं.
जगरूप की अकादमी की वजह से इस गांव के बच्चे भी हॉकी खेल में अपनी करियर बना रहे हैं. जरखर हॉकी अकादमी का सालाना बजट 20 लाख रूपये है. इस बजट को 15 एनआरआई परिवार और कुछ स्थानीय परिवारों की मदद से पूरा किया जाता है. अभी तक एकेडमी में वे 4 करोड़ रूपये लगा चुके हैं.