नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नेशनल स्पोर्ट्स कोड और केंद्र सरकार के अनुसार भारतीय कुश्ती महासंघ यानि डब्ल्यूएफआई के लिए यह जरूरी नहीं है कि रियो ओलंपिक में खिलाडिय़ों को भेजने का निर्णय करने के लिए ट्रायल करवाए.
कोर्ट ने कहा कि समस्या यह है कि स्पोर्ट्स कोड में यह नहीं कहा गया है कि ट्रायल जरूरी है. नियमों के अनुसार यह निर्णय संगठन को करना है कि वह (खिलाड़ी के चयन के लिए) ट्रायल करवाना चाहते हैं या नहीं. यह टिप्पणी नहाई कोर्ट ने दो बार ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार के वकील की तरफ से दी गई दलीलें सुनने के बाद की है.
इस मामले में सुशील कुमार ने रियो ओलंपिक में भाग लेने के लिए खिलाड़ी का चयन करने के लिए ट्रायल करवाने की मांग की है. इस मामले की सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने केंद्र सरकार से उनकी भूमिका के बारे में पूछा तो केंद्र सरकार ने बताया कि इस मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है. डब्ल्यूएफआई एक स्वंतत्र संगठन है. वहीं महासंघ ने न्यायालय को बताया कि वह तीन मई को ही नरसिंह पंचम यादव का नाम यूनाईटेड वल्र्ड रेस्लिंग को भेज चुके हैं. जो ओलंपिक खेलों को देख रही है.
जिस पर सुशील की तरफ से पेश वकील ने सवाल उठाते हुए कहा कि तीन मई को ही नाम क्यों भेजा गया,जबकि नाम भेजने की अंतिम तिथि 18 जुलाई है. हालांकि कोर्ट ने कहा कि खिलाडिय़ों को चयन प्रक्रिया के बारे में पता होता है. जिस पर सुशील के वकील ने कहा कि हर साल महासंघ कॉमनवेल्थ गेम के लिए ट्रायल करवाती है,परंतु वर्ष 2014 में ऐसा नहीं किया गया.
इसलिए चयन प्रक्रिया में असमानता है. साथ ही ये भी कहा कि केंद्र सरकार इस तरह अपनी भूमिका से बच नहीं सकती है. स्पोर्ट्स कोड के तहत केंद्र सरकार की ड्यूटी बनती है कि वह महासंघ निष्पक्ष पॉलिसी का पालन करें. जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट सोमवार को अपना फैसला सुनाएगा.