डोकलाम पर चीन की तनातनी के बीच आज हम आपको भारत के आखिरी गांव में लेकर चलेंगे. ये गांव उत्तराखंड में चीन सीमा के पास बसा है. बद्रीनाथ से करीब 4 किलोमीटर दूर बसे इस गांव का नाम है माणा गांव है. यहां के लोगों के इरादे हिमालय जितने मजबूत हैं और वो भारत पर कोई भी खतरा पैदा होने की सूरत में चीन से टकराने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं. जहां इन पहाड़ों के उस पार चालबाज़ चीन का बसेरा है.
नई दिल्ली: डोकलाम पर चीन की तनातनी के बीच आज हम आपको भारत के आखिरी गांव में लेकर चलेंगे. ये गांव उत्तराखंड में चीन सीमा के पास बसा है. बद्रीनाथ से करीब 4 किलोमीटर दूर बसे इस गांव का नाम है माणा गांव है. यहां के लोगों के इरादे हिमालय जितने मजबूत हैं और वो भारत पर कोई भी खतरा पैदा होने की सूरत में चीन से टकराने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं. जहां इन पहाड़ों के उस पार चालबाज़ चीन का बसेरा है.
विकास का नामो-निशां नहीं है, लेकिन यहां लोगों के दिल में देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम का जज़्बा ऐसा, जिसे देखकर चीन भी चित हो जाएगा. माणा गांव देश के दूसरे गांव से बिल्कुल अलग है. पहाड़ों के बीच बसा ये छोटा सा गांव साल में 6 महीने बर्फ से पूरी तरह ढंका रहता है, अक्टूबर से लेकर मार्च महीने तक इस गांव के लोग अपना घर बार छोड़कर माल-मवेशी के साथ नीचे चमोली के आसपास रहने के लिए चले जाते हैं.
ऐसे मुश्किल हालात में यहां लोगों के दिल में देशभक्ति का ये जज़्बा इतना बुलंद कैसे है, ये दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में रहने वाले लोगों के लिए समझना बेहद जरूरी है. चीन से तनातनी और बॉर्डर पर बढ़ते खतरे के बावजूद ये जोश और हिम्मत सिर्फ माहेश्वरी देवी की ही नहीं है, बल्कि गांव की दूसरी महिलाएं भी बिना डरे, चीन का मुकाबला करने के लिए हर पल तैयार रहती हैं.साल में महज 6 महीने गुलजार रहने वाला ये गांव लोगों का पेट कैसे भरता है.
कैसे लोग इन ऊंचे पहाड़ों के बीच हिंदुस्तान के तिरंगे को कभी झुकने नहीं देते, आगे आपको दिखाएंगे. आप बस बने रहिए हमारे साथ.माणा गांव की करीब 60 फीसदी आबादी बुजुर्गों की है. लेकिन इनके हौसले देखते ही बनते हैं. इस गांव में सरकारी सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है. यहां न तो सड़कें हैं और न ही कोई स्वास्थ्य केन्द्र. ऊपर से चीन की तरफ से हर वक्त खतरा बना रहता है.
इन सबके बीच इस गांव के लोगों के दिलों में देश प्रेम की भावना चीन को चित करने के लिए काफी हैं.करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे माणा गांव में कुदरत की खूबसूरती देखते ही बनती है. लेकिन यहां इंसानी जिंदगी हर दिन जंग लड़ने जैसी है. माणा गांव में करीब 200 घर हैं. जबकि यहां की कुल आबादी में से 60 फीसदी लोग बुजुर्ग हैं. आजादी के 70 साल बीत जाने के बावजूद यहां के लोगों को एक स्वास्थ्य केन्द्र तक नसीब नहीं हुआ है.
गांव के सामने जो ऊंचे पहाड़ नजर आ रहे हैं, उसके पीछे चीन है. सीमा पर आखिरी गांव होने की वजह से यहां खतरा चौबीसों घंटे बना रहता है. लेकिन माणा गांव के लोग हर वक्त पहाड़ बनकर चीन के सामने डटे रहते हैं.यहां के लोग स्वभाव से तो बेहद मिलनसार हैं, लेकिन देश की आन, बान और शान की बात आने पर उतने ही कठोर भी बन जाते हैं.