नई दिल्ली: देश के कई इलाकों में घर लोगों के लिए काल बन रही हैं. वो इमारतें जो देश के अलग-अलग हिस्सों में धराशायी हो रही हैं और अपने साथ कई जीदंगियां लील जा रही हैं. पर सवाल उठाना इसलिए जरूरी है कि ढहने वाली ज्यादातर इमारतें जर्जर हैं और इसका सीधा मतलब ये कि हादसा होना लगभग तय था और उसे टाला जा सकता था, जिन्दगियां बचाई जा सकती थीं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
मुंबई के घाटकोपर में चार मंजिला इमारत ताश के पत्तों की तरह ढह गई. 8 लोगों की मौत हो गई है और कई अब भी मलबे के नीचे दबे हैं जिन्हें निकालने की जद्दोजहद जारी है. जहां भारत के पश्चिम में मुंबई में इमारत गिर रही थी तो कमोबेश पूर्वी भारत के कोलकाता में भी जिन्दगियां इमारत के मलबे के नीचे जमीनदोज हो रही थीं.
दोनों शहरों में कई हजार किलोमीटर का फासला हो सकता है लेकिन दोनों हादसों में एक बात कॉमन है. दोनों ही जगह इमारतें जर्जर थीं. हादसे की दस्तक सुनी जा सकती थी और उसे टाला नहीं गया.
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