नई दिल्ली: गैंगस्टर आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद भी पुलिस चैन से नहीं बैठ पाई है. एनकाउंटर के 19 दिन बाद गुरुवार को उसके शव का अंतिम संस्कार तो कर दिया गया है लेकिन एनकाउंटर के विरोध की चिंगारी अभी भी सुलग रही है. क्या किसी गैंगस्टर को सिर्फ इसलिए सिर माथे पर रखा जाना चाहिए क्योंकि वो किसी खास जाति का है.
क्या उसे रॉबिनहुड बनाकर उसकी पूजा होनी चाहिए. पिछले दो हफ्ते से राजस्थान का नागौर सुलग रहा है और उसके सुलगने की वजह है गैंगस्टर आनंदपाल सिंह. बुधवार को राजस्थान में 50 हजार से ज्यादा की भीड़ एक गैंगस्टर के लिए जमा हुई थी. वो गैंगस्टर जिसे राजस्थान की पुलिस ने 24 घंटे के एनकाउंटर के बाद मार गिराया था.
घर वालों ने एनकाउंटर के 19 दिन तक गैगस्टर का डेड बॉडी फ्रीजर में रख कर धरने पर बैठे हुए थे. सड़क पर उसकी जाति के लोग शोले बरसा रहे थे. कहीं आग तो कहीं पत्थर बरस रहे थे. इस भीड़ को संभालना राजस्थान की बसुंधरा सरकार को भारी पड़ रहा है. भीड़ की नारेबाजी ऐसा लग रहा था मानों किसी महापुरुष का देहावसान हो गया हो और उनकी शख्सियत की तुलना चांद और तारे से की जा रही थी. आनंदपाल पर 34 से ज्यादा मामले दर्ज थे, जिनमें हत्या, किडनैपिंग जैसे संगीन अपराध शामिल थे.
कहा ये भी जा रहा है कि राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं लिहाजा विपक्ष के कुछ नेता कुख्यात आनंदपाल के मामले का सियासी फायदा लेना चाहते हैं. इसलिए आनंदपाल के एनकाउंटर को सियासी कलर दे दिया गया. ऐसा नहीं कि ये मांग संवैधानिक तरीके से नहीं की जा सकती. लेकिन इसके लिए लोगों को भड़का कर सिस्टम को डराने की कोशिश की गई. बुधवार को रैली के दौरान नागौर के एसपी पारिश देशमुख पर ही उपद्रवियों ने हमला कर दिया था. 2014 में बीकानेर जेल में रहने के दौरान आनंदपाल और उसके साथियों ने उसी जेल में बंद विरोधी गैंग के तीन बदमाशों को मौत के घाट उतार दिया था.
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