नई दिल्ली: प्रश्नकाल में अमरनाथ यात्रा के श्रद्धालुओं पर हुए आतंकी हमले के बाद उठ रहे दो सवालों का ज़िक्र. पहला सवाल ये कि सुरक्षाबलों के हज़ारों जवानों के बावजूद ये आतंकी हमला हो कैसे गया और दूसरा ये कि हिन्दुस्तान कब तक सहेगा ये सब ?
प्रश्नकाल में इन पहलूओं को विस्तार से समझें उसके पहले आपको देश के आम नागरिकों का दर्द और गुस्सा दिखाना चाहता हूं. अपने को खोने का दर्द और बार बार हो रहे आतंकी हमलों से आजिज आ चुके एक हिन्दुस्तानी का दर्द सुनिए आपका भी दिल रो पड़ेगा.
प्रश्नकाल में इसकी तस्दीक करती दो तस्वीरें रखना चाहता हूं.पहली तस्वीर उस बस के ड्राइवर की है जिसपर आतंकी हमला हुआ था. ड्राइवर का नाम सलीम है औऱ आज उसकी बहादुरी की चर्चा हिन्दोस्तां के हर कोने में है क्योंकि गोलियों की बौछार के बीच भी उसने बस को रोका नहीं वरना कई और जानें जा सकती थीं.
उन यात्रियों की है जो इस हमले के बाद भी अमरनाथ के लिए रवाना होते वक्त पूरे जोश से लबरेज़ थे. उनका उत्साह और उनकी हिम्मत चेहरे पर दमक रही थी. डर या ख़ौफ का कतरा तक नहीं था और ये दोनों तस्वीरें खास तौर पर दिखा रहा हूं ताकि जो आतंकी और उनके हुकमरान हैं वो ये देख सकें कि हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानियों के हौसले को मात देना इतना आसान नहीं है.
आतंकियों ने तो अंधेरे की आड़ में कायराना हमला किया लेकिन हिन्दुस्तानी न तो कायर हैं, न डरपोक.और अब प्रश्नकाल में वो सवाल जिसका जवाब बहुत से लोग जानना चाहते हैं. सवाल ये कि आखिर आतंकी हमला हुआ कैसे.. क्या सुरक्षा के लिहाज़ से चूक हुई.
इसका जवाब देती रिपोर्ट दिखाउं उससे पहले ये जान लीजिए कि आतंकी हमले का अलर्ट पहले से था और इसीलिए हर बार की तरह इस भार भी सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम थे. श्रद्धालुओं की हर बस के साथ सुरक्षाबलों की गाड़ी जा रही थी. लेकिन जिस बस पर हमला हुआ उसका न तो रजिस्ट्रेशन हुआ था औऱ न तो उसके साथ सुरक्षा वाली गाड़ी थी क्योंकि शाम के बाद उस रुट पर चलना ही मना होता है.