नई दिल्ली: मैं हिंदुस्तान, बिन पानी सून को जीने वाला हिंदुस्तान, पानी मेरी आंखों से छलछता है लेकिन आत्मा की प्यास नहीं बुझाता. मैं बूंद-बूंद पानी को तड़पता हिंदुस्तान. सूखे कुएं, सूखी नदियां, सूखे नहर का हिंदुस्तान. बिन पानी सून को जीनेवाला हिंदुस्तान.
पानी के लिए मारपीट और हाहाकार, पानी के चलते बच्चे, महिलाओं और बुजुर्गों का चीत्कार मरने लगे हैं शादी-ब्याह के मौसम और पर्व-त्योहार, पानी बिकता है यहां खरीदोगे ? लेकिन पहिए वाले पानी से प्यास नहीं बुझता है.
गंदे कुएं के पानी से कब तक चलेगी जिंदगी ? कागजी सरकारी नीतियों से कब बुझेगा प्यास ? कैसे कहूं मैं हिंदुस्तान नदियों का देश हिंदुस्तान ? एक दो नहीं मराठवाड़ा के सैकड़ों गांव की यही कहानी है. यहां टैंकर के जरिए ही लोगों को पीने का पानी मिल पाता है.
पानी की किल्लत के चलते लोग टैंकर वाले से ही उलझ पड़े. पानी की पड़ताल करते गांव के सरपंच से भी हमारी मुलाकात हुई. हमने उनसे पूछा कि यहां पानी की इतनी किल्लत क्यों है ? इससे आगे की बात हमें और हैरान करती है.
टैंकर का पानी सीधे लोगों की बाल्टी का गागर में नहीं भरा जाता है. इसे कुएं में डाला जाता है. हम उस कुएं पर पहुंचे तो वो सूख रहा था. इस बीच हमने देखा कि एक इंसान कुएं में उतरकर उसकी सफाई कर रहा है. इसके बाद टैंकर का पानी कुएं में गिराया जाता है. तो पानी भरने के लिए आपाधापी मचती है. लेकिन वो पानी भी पीने लायक नहीं होता लेकिन मजबूरी ऐसी कि गंदे पानी को भी हलक के नीचे उतारना पड़ता है.