नई दिल्ली: आपका खाना पेड़ पर हो दाना पहाड़ पर हो. और पानी पाताल में. यकीन मानिए मैं आपको कोई पहेली नहीं बुझा रहा. ये हमारे आसपास की हकीकत है. ऐसी हकीकत जिसे देख आपकी आंखें भर आएंगी .कलेजा पसीज जाएगा. आप सोचने को मजबूर हो जाएंगे कि क्या 21वीं सदी के हिंदुस्तान की ऐसी भी तस्वीर हो सकती है ?
आज देश में हम डिजिटल इंडिया के दावे और वादे करते हैं. लेकिन तरक्की का नेटवर्क पेड़ पर बैठ जाता है. आज की हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट उसी का आईना है. 21वीं सदी के हिंदुस्तान की. पेड़ पर मोबाइल का नेटवर्क मिलेगा तो पेट को अनाज. और पाताल में पानी में मिलेगा तो बच्चों की प्यास बुझेगी. दोनों तस्वीरें झकझोर देने वाली हैं.
विकास के दावों का दम निकालने वाली है. घर में राशन चाहिए तो पेड़ पर चढ़ना होगा. इंसान को प्यास बुझानी है तो इस गंदे गड्ढे में उतरना होगा. उम्मीद और खतरों में लिपटी दोनों कहानी सिसकते भारत की हैं. दो जून की रोटी चाहिए तो पेड़ पर चढ़िए-उतरिए. पेट भरना है पहाड़ों पर चढ़िए . तब जाकर यहां उम्मीदों का नेटवर्क दिखता है. और इसी पेड़ पर जन वितरण प्रणाली यानी सरकारी राशन की दुकान लगती है.
ये 21वीं सदी के हिंदुस्तान के फूड डिपार्टमेंट सिस्टम की हवा-हवाई हकीकत है. देखिए एक बुजुर्ग महिला बांस की सीढ़ी के सहारे पेड़ पर चढ़ती है. पेड़ की टहनी पर फिरोजी रंग की शर्ट पहने एक लड़का बैठा है.जिसके हाथ में पॉइन्ट ऑफ सेल्स यानी POS मशीन है. साधारण शब्दों में कहें तो ये बायोमिट्रिक यानी अंगूठा लगाने वाली मशीन है.