नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी की कमान कौन संभालेगा. यूपी में सरकार और यादव परिवार में किसकी चलेगी. मुलायम और अखिलेश के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई में बाजी किसके हाथ लगेगी. ये सवाल सियासी गलियारों में छाया हुआ है.
हालांकि अखिलेश ने समर्थकों के बूते अपनी बादशाहत का ऐलान कर दिया है पर मुलायम सिंह और उसके साथ खड़े पार्टी नेता भी पीछे हटने को तैयार नहीं. पार्टी के इलेक्शन सिंबॉल को लेकर लड़ाई जारी है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मुलायम परिवार के इस द्रोहकाल में अखिलेश ने कैसे बढ़त बनाई. आखिर ऐसा क्या हुआ कि रातों रात सुल्तान का तख्ता पलट गया.
समाजवादी पार्टी के यही वो तीन बड़े चेहरे हैं जिन्होंने पार्टी और सरकार में मुलायम के खिलाफ अखिलेश के हाथ मजबूत किए. ये तीनों ही नेता मुलायम सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं. पर फैसले की घड़ी में इन्होंने मुलायम का साथ छोड़ दिया.
किरणमय 1977 से 2011 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधायक रहे. उन्होंने लगातार 7 बार विधायक का चुनाव जीता साल 2012 में वो राज्यसभा से सांसद चुने गए. अब सवाल उठता है कि किरणमय नंदा ने पिता पुत्र की लड़ाई में अखिलेश का साथ क्यों दिया.
किरणमय नंदा की तरह ही रेवती रमण सिंह भी मुलायम और पार्टी के बेहद भरोसेमंद माने जाते रहे हैं. रेवती रमण सिंह समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं. वो इलाहाबाद से लोकसभा के सांसद चुने जाते रहे हैं और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता को भी चुनाव में हरा चुके हैं.
दरअसल पिता-पुत्र के सियासी घमासान में कार्यकर्ताओं और समर्थकों का झुकाव अखिलेश की ओर देखते हुए ही ज्यादातर समाजवादी नेताओं ने मुलायम से किनारा कर लिया. इसकी एक वजह ये भी रही कि अखिलेश के खेमे में आए ज्यादातर सीनियर नेताओं को अपने परिवार की सियासत भी मजबूत करनी थी.
देखिए ये चार अनुभवी चेहरे जो आज अखिलेश के साथ हैं. इनकी हसरत कहीं न कहीं अपने बेटों की सियासत को भी आगे बढ़ाना है. रेवती रमण के उज्जवल रमण. नरेश अग्रवाल के नितिन अग्रवाल बलराम यादव के बेटे संग्राम यादव और अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद का सियासी भविष्य भी कहीं न कहीं अखिलेश यादव की सफलता से ही जुड़ा है.