नई दिल्ली. इस वक्त एक राशन की दुकान पर खड़ा हूं या कह लें कि एक बड़ी थोक दुकान पर खड़ा हूं. आप देख सकते हैं पूरी दुकान सामान से अटी पड़ी है. लेकिन कहा जा रहा है कि खरीददार नहीं आ रहे. दो तरह की समस्या है. पहली ये कि मार्केट में कैश नहीं. दूसरी समस्या ये है कि नए नोट ज्यादातर 2000 के हैं. जिसे लेकर लोग घूम रहे हैं.
रेस्टोरेंट वाले खुल्ला देने को तैयार नहीं, गल्ले की दुकान वाले चेंज देने को तैयार नहीं. इन सबके अलावा मैं आपको अस्पताल ले चलूंगा. ये दिखाउंगा कि कैसे सरकारी अस्पताल में भी नोटबंदी के नाम पर लूट मची है, लेकिन पहले हमारे सहयोगी राजीव शर्मा की ये रिपोर्ट देखिए जिसमें हालात का जायजा लेने के साथ ऑन स्पॉट सर्वे कर रहे हैं.
नोट के लिए तीन-तीन दिन से लाइन में लगे लोगों को आप देख रहे हैं. जूते-चप्पल की लाइन आप देख रहे हैं. अपने ही पैसों के लिए आपस में मारपीट आप रोज-रोज देख रहे हैं, लेकिन हम आज आपको अस्पताल लेकर चल रहे हैं. जहां नोट का सीधा संबंध जीने-मरने से है. वहां क्या हाल है उसे देखिए ये लखनऊ के एक नर्सिंग होम में लेटे मरीज हैं. रोग से बड़ा दर्द नोटबंदी का है.
जिस तरह शहर-शहर नोटबंदी का कहर है वैसे ही अस्पताल-अस्पताल नोटबंदी का दर्द है. गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल में क्या पुराने नोट लिए जा रहे हैं. ये जानने के लिए हम सीधे कैश काउंटर पहुंचे. कैशियर को 500 और हजार का नोट देने को कहा .जहां सीधे-सीधे मना कर दिया गया.