नई दिल्ली: इस्लाम धर्म के पांच मूल स्तंभों में से एक है जकात, जिसका अर्थ है “शुद्धिकरण।” यह एक प्रकार का दान है, जिसे हर मुसलमान गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के लिए देता है। जकात का भुगतान आमतौर पर रमजान के पाक महीने में किया जाता है और यह इस्लाम के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कुरान में नमाज़ (सलात) के बाद जकात को प्राथमिकता दी गई है। इसे अल्लाह द्वारा दिया गया एक ऐसा धन माना जाता है, जिसका उपयोग जरूरतमंदों की मदद के लिए किया जाना चाहिए। शरीयत के अनुसार, मुसलमानों को अपनी सम्पत्ति का 2.5 प्रतिशत हिस्सा दान करना चाहिए। हालांकि, मुसलमान अपनी क्षमता के अनुसार भी जकात दे सकते हैं।
जकात देने का तरीका विभिन्न देशों में अलग-अलग हो सकता है। कुछ मुस्लिम देशों की सरकारें जकात इकट्ठा करती हैं, जबकि कई लोग इसे स्थानीय मस्जिदों या मुस्लिम संगठनों के माध्यम से देते हैं।
जकात अदा करने के लिए कोई निश्चित समय नहीं होता। मुसलमान को अपनी धनराशि एक वर्ष तक जमा रखने के बाद, जब वह निसाब (एक न्यूनतम राशि) तक पहुंच जाए, तब जकात देना चाहिए।
जकात के लिए निम्नलिखित 8 प्रकार के लोगों को पात्र माना गया है:
1. गरीब: जिनके पास अपने जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
2. जरूरतमंद: जो आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
3. प्रशासनिक कार्यकर्ता: जो जकात का प्रबंधन करते हैं।
4. जोड़े में सुलह के इच्छुक: नए मुसलमान या जिनका दिल इस्लाम की ओर झुकता है।
5. बंधनों में फंसे लोग: जिन्हें बंधक बनाया गया है।
6. कर्ज में डूबे लोग: जो कर्ज चुका पाने में असमर्थ हैं।
7. ईश्वर के मार्ग के लिए: धार्मिक कार्यों में लगे लोग।
8. यात्री: जो यात्रा के दौरान संकट में हैं।
जकात न केवल गरीबों की मदद करती है, बल्कि यह समाज में समरसता और एकता भी बढ़ाती है। इस प्रकार, जकात एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है, जिसे हर मुसलमान अपने सामर्थ्य के अनुसार अदा करता है।
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