Mahabharata: महाभारत काल में द्रुपद कन्या द्रौपदी और पांडवों को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल आते हैं। उस समय में समाज ने बहुपति वाली स्त्री को कैसे स्वीकार कर लिया? द्रौपदी का स्वयंवर तो अर्जुन ने जीता था फिर उन्होंने पांच पांडवों को पति के रूप में कैसे स्वीकारा? सबसे बड़ा […]
Mahabharata: महाभारत काल में द्रुपद कन्या द्रौपदी और पांडवों को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल आते हैं। उस समय में समाज ने बहुपति वाली स्त्री को कैसे स्वीकार कर लिया? द्रौपदी का स्वयंवर तो अर्जुन ने जीता था फिर उन्होंने पांच पांडवों को पति के रूप में कैसे स्वीकारा? सबसे बड़ा सवाल लोगों के मन में यह उठता है कि पांचाली पांचों पांडवों के साथ कैसे संबंध बनाती थीं? पांच पुरुषों से संपर्क होने के बाद भी वो पवित्र कैसे बनी रहीं? आइये जानते हैं सभी सवालों के जवाब…
कहा जाता है कि द्रौपदी पांचों पांडवों के साथ 1-1 साल तक रहती थीं। इस समय अंतराल पर किसी अन्य पांडव को द्रौपदी के आवास में जाने की इजाजत नहीं थी। अगर किसी ने यह नियम तोड़ा तो उन्हें एक साल तक देश से बाहर रहने का दंड भुगतना पड़ता। यह दंड अर्जुन को मिला था। बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने संतान उत्पत्ति के लिए द्रौपदी को सुझाव दिया था कि वो हर साल पांचों पांडवों में से किसी एक के साथ समय बताये। इस दौरान संबंध बनाने पर वो उस पांडव का संतान कहलाता।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक पूर्व जन्म में द्रौपदी अत्यंत सुन्दर थी। सर्वगुण संपन्न होने की वजह से योग्य वर नहीं मिल रहा था। उन्होंने भगवान शंकर की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न कर दिया। शिव जी जब प्रकट हुए तो द्रौपदी के ने पांच बार वर मांग लिया। उन्होंने पांच पति होने का वरदान दे दिया। कोई स्त्री पांच पतियों के साथ कैसे रहेगी तो शिव जी ने कहा कि प्रतिदिन स्नान करने के बाद वो फिर से कौमार्य को प्राप्त कर लेंगी। इस कारण पांच पुरुषों से संबंध बनाने के बाद भी द्रौपदी कुंवारी रहीं।
देश का ऐसा मंदिर जहां चूहों की पूजा होती है और पैर घसीटकर चलते हैं भक्त, जूठा प्रसाद है वरदान!