September 19, 2024
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स्वर्ग की अप्सराओं से संबंध बनाने को क्यों आतुर रहते थे ऋषि-मुनि, कर बैठते थे भारी भूल

  • WRITTEN BY: Pooja Thakur
  • LAST UPDATED : August 20, 2024, 9:28 am IST

नई दिल्ली। देवराज इंद्र के दरबार में कई अप्सराएं रहती थीं, जो अपनी सुन्दरता के कारण जानी जाती थी। नृत्य गान के अलावा देवराज इन अप्सराओं को एक अस्त्र के रूप में उपयोग करते थे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक ये अप्सराएं इतनी सुंदर थीं कि पत्थर भी इन्हें देखकर मोम बन जाए।

इंद्र चलते थे चाल

देवराज को हमेशा इस बात का डर लगा रहता था कि ऋषि मुनि तपस्या करके उनसे इंद्रलोक की गद्दी न मांग लें। इस कारण जब भी किसी ऋषि को वो तपस्या में लीन देखते थे तो उसे भंग करने के लिए अप्सराओं को भेज देते थे। इनके सौंदर्य जाल में फंसकर कई ऋषि अपनी तपस्या नष्ट कर चुके हैं। आइए जानते हैं उन ऋषियों के बारे में जो अप्सराओं की मोह में फंसे और उनके साथ संबंध स्थापित की।

मेनका

तपस्या में लीन विश्‍वामित्र का ध्यान भटकाने के लिए इंद्र ने मेनका को भेजा था। काफी कोशिशों के बाद मेनका विश्वामित्र का तपस्या भंग करने में सफल रहीं। विश्वामित्र ने जब मेनका को देखा तो अपनी सुध बुध खो दिए। वो मेनका के साथ पति पत्नी की तरह रहने लगे। दोनों की एक बेटी हुई। बाद में मेनका उन्हें छोड़कर स्वर्ग चली गई। विश्वामित्र को इंद्र के छल के बारे में पता चला तो उन्होंने अपनी पुत्री को छोड़ दिया और फिर से तपस्या में लीन हो गए।

रंभा

ऋषि शेशिरायण की नजर एक बार अत्यंत सुंदर कन्या पर गई, जो कि अप्सरा रंभा थीं। रंभा की सुंदरता को देखकर ऋषि शेशिरायण खुद को संभाल नहीं पाए। दोनों के बीच संबंध बनने से रंभा ने पुत्र को जन्म दिया। भगवान कृष्ण ने उनके पुत्र का अंत किया था।

उर्वशी

एक बार विभांडक ऋषि कठोर तपस्या में लीन थे, यह देखकर सभी देवी देवता परेशान हो गए। उनकी तपस्या भंग करने के लिए स्‍वर्ग से उर्वशी को भेजा। उर्वशी की सुंदरता से विभांडक ऋषि आकर्षित हो गए। दोनों के बीच संबंध बनने श्रृंग ऋषि का जन्म हुआ। पुत्र जन्म के बाद उर्वशी वापस स्वर्ग चले गई। वहीं विभांडक ऋषि अपने पुत्र के साथ घने जंगलों में पूजा पाठ लग गए।

घृताची

इंद्र के दरबार में रहने वाली घृताची सबसे सुंदर अप्सराओं में से गिनी जाती थीं। एक बार भारद्वाज मुनि गंगा स्नान करके अपनी कुटी की ओर लौट रहे थे। तभी उन्होंने स्नान करते हुए अप्‍सरा घृताची को देखा। घृताची को ऐसे स्नान करता देखकर भारद्वाज मुनि मिलन के लिए आतुर हो गए। ऋषि खुद को संभाल नहीं पाए और उनका वीर्यपात हो गया। उन्होंने उस वीर्य को मिट्टी के पात्र में रख दिया। उसी से द्रौणाचार्य का जन्म हुआ।

 

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